तुलसी साहित्य में संवेगों की मनोवैज्ञानिक भूमिका | Tulasi Sahity Men Sanvegon Ki Manovaigyanik Bhumika

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Book Image : तुलसी साहित्य में संवेगों की मनोवैज्ञानिक भूमिका  - Tulasi Sahity Men Sanvegon Ki Manovaigyanik Bhumika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तुलसी का जीवन भी परिवेश से अत्यधिक प्रभावित हुआ था। उनके जीवन की व्यक्तिगत परिस्थितियाँ उसमें भी बाल्यकालीन परिस्थितियाँ बड़े ही घातक प्रभाव वाली थीं। वे जीवन के प्रारम्भ से ही भाग्यहीन थे।” माता-पिता ने उन्हें जन्म देने के उपरान्त त्याग दिया था जिसके कारण वे बड़े ही दरिद्र और असहाय हो गये थे। अपनी दरिद्रता के कारण उन्हें द्वार-द्वार जाकर भीख मॉँगनी पड़ती थी और लोगों के निरादर का पात्र बनना पड़ता था। लोग बालक तुलसी का तिरस्कार करते थे और उपेक्षा की दृष्टि से उसे देखते थे। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जिस वातावरण में बालक को बड़े लोगों से संघर्ष करना पड़े, उनकी डॉट फटकार और तिरस्कार सहना पड़े तो ऐसा वातावरण उसमें दैन्य जाग्रत करता है। इस प्रवृत्ति की अतिशयता से उसमें मानसिक दासता आ जाती है। बालक हीनता-बोध के कारण अपने को अयोग्य समझने लगता है और किसी सामर्थ्यवान्‌ स्वामी की शरण पाने के लिए बेचैन हो उठता है। तुलसी की बाल्यकालीन परिस्थितियाँ ऐसी ही थीं। माता-पिता के त्याग, अशुभ घड़ी में जन्म लेने के. कारण माता-पिता को होने वाले परिताप, दर-दर टुकड़े-टुकड़े के लिए ललचाने पर लोगों से मिलने वाले तिरस्कार, उपेक्षा और डॉट-फटकार ने उनके अन्तर में न केवल हीनतावृत्ति जागृत की थी बल्कि दारिद्य के कारण दैन्य वृत्ति का भी समावेश कर दिया था। अपनी इसी दैन्य वृत्ति के कारण उन्होंने कुपात्र-सुपात्र सभी को अपनी दीनता सुनायी थी। तुलसी के साहित्य जगत में उनकी इस मन:स्थिति की स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। तुलसी के जीवन में उनकी युवाकालीन परिस्थितियाँ, बाल्यकालीन परिस्थितियों से अधिक गम्भीर परिवर्तन लाने वाली सिद्ध हुई थीं। फ़ायड की मान्यता है कि राग भावना बालकों में प्रारम्भ से ही विद्यमान रहती है।” तुलसी का अन्तःकरण भी इस भावना से पूर्णतया अभिभूत था। लेकिन उनकी यह वृत्ति माता-पिता के त्याग और लोगों के तिरस्कार से कुंठित हो गयी थी। दीन अवस्था में छटपटाते तुलसी को जब एक करूणाद्र हृदय गुरू का आश्रय प्राप्त हुआ और तब उन्होंने पहली बार इस कुंठा से मुक्त होने का अवसर प्राप्त किया। समय की अनुकूलता में तुलसी का विवाह रत्नावली नाम की सुन्दरी से हुआ और फिर विवाहोपरान्त उनकी यह हदीनों भावना कामभावना में परिणत हो गयी। काम भावना उनमें इतनी बढ़ी कि उन्हें स्त्री का बिछोह पल भर के लिए भी अखरने लगा। काम की यह अतिशयता उनके जीवन में एक प्रभावकारी मोड़ लायी। एक बार स्त्री द्वारा प्रताड़ित होने पर तुलसी में घोर वैराग्य जागा और उनका यह राग भक्ति में बदल गया। तुलसी के व्यक्तित्व निर्माण में उनकी व्यक्तिगत परिस्थितियों के साथ-साथ सामयिक परिस्थितियाँ भी एक महत्वपूर्ण कारक थीं। तत्कालीन मुगल शासक अकबर के राज्य में राजनीतिक अव्यवस्था, सामाजिक विश्रंखलता, ही धार्मिक आडम्बर और आर्थिक शोषण से प्रजा बुरी तरह पीड़ित थी।” अकबर ऊपर से तो न्यायप्रिय और शान्तिप्रिय ि . प्रतीत होता था लेकिन अन्दर से वह स्वार्थी , स्वेच्छाचारी, विलासी और अत्याचारी था। मुगल शासन प्रणाली पूर्णरूपेण एक सैनिक शासन प्रणाली थी, जिसका समाज की नैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक उन्नति से कोई सम्बन्ध नहीं *” ये लोग प्रत्येक सामन्त की मृत्यु पर उसकी सम्पत्ति हड़प लेते थे जिससे अनेकानेक परिवार अनाथ हो भीख .. _ मांगने के लिए विवश हो जाते थे। कृषकों से उनकी आवश्यकताओं की उपेक्षा करके अधिक लगान वसूल किया जाता _ था। अनेक इतिहास-ग्रंथों से यह भी पता चला है कि इन मुगल शासकों में परधन अपहरण की तरह परदारो अपहरण... की भी प्रवृत्ति थी। 11 एम रे, कम सा शुतिरा




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