भद्रबाहुचरित्र | Bhadravahucharitra

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Bhadravahucharitra by उदयलाल जैन - Udaylal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) कहिये जैसा दिगस्बरी लोग उनकी उत्पत्तिके बाबत वास्तविक मारगेका छोड़ना बताते हैं श्वताम्बरी छोग भी तो वही बात कहते हैं कि- जिनकट्प वास्तवमें सत्य है । परन्तु काठकी कराठतासे उसका व्युच्छेद्‌ होगया है । इसलिये वह अब बहुत दी कठिन है । सो उसे हम लोग धारण नहीं कर सकते । यही पाठ शिवभूतिसे भी कहा गया था न ? तो अब पाठक ही विचारें कि कौन मत तो पुरातन है और किसका कहना वास्तवमें सत्पथका अनुदरण करता है ? यह बात तो हमने श्ताम्बरी छोगोंके ग्रन्थेंसि ही बताई है ओर उन्होंसे दिगम्बर मत पुरातन सिद्ध होता हैं। जब स्वयं अपने शास्त्रोंमें ही ऐसी कथा है जो स्वयं अपने को बाधित ठहराती दे--फिर भी आश्रहस दूसरोंका बुरा भला कहना भूल है। जरा हमारे श्रेताम्बरी भाइ यह बात सिद्ध तो करें कि दिगम्बर मत आधुनिक है? वे ओर तो चाहै कुछ कहें परन्तु अपने अ्न्थका किस रीतिसे समाधान करते हैं यही बात हमें देखना है | दिगम्बर लोग श्ेतास्बारियोंकी बाबत कहते हैं कि यह मत विक्रम सम्बत १३६ में निकला । उसी तरह श्पताम्बर दिगम्बरियोंके बाबत लिखते हैं कि-वि. सं. १३८ में दिगम्बर मत श्ताम्बरसे निकला । दोनों मतोंकी कथा भी हम ऊपर उद्धुत कर आये हैं। सार किसके कहनेमें हे. यह बात बुद्धिमान पाठक कथा * ही से यद्यपि अच्छी तरह जान सकते हैं और इस हालतमें यदि हम और प्रमार्णोकों दिगम्बरियोंकी प्राचीनता सिद्ध करनेमें न दें तो भी हमारा काम अटका नहीं रहेगा । क्योंकि जो बात खण्डन लिखनेवालोंकी लेखनी ही से ऐसी निकल जावे जिससे खण्डन तो दूर रहे और दूसरोंका मण्डन हा जाय तो उसे छोड़कर ऐसा कौन प्रबठ प्रमाण हो सकता है जिससे कुछ उपयोग निकले खेताम्बरी भाइ यह न समझे [कि इस ठेखस हम और प्रमाण देनेके लिये निबेठ हों । हम अपनी और से तो जहां तक हो सकेगा दिगम्बर धर्मके प्राचीन बतानेमें प्रयत्न करेंगे ही । परन्तु पहले पाठकोंको यह तो समझादें कि दिगम्बर धर्म श्वेताम्वरसे प्राचीन है। बह भी श्वेतास्वरके प्रन्थोंखे ! अस्तु, अब हम उन प्रमाणोको भी उप:




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