भक्त - पञ्चरत्न | Bhakt Pancharatn
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
119
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भसक्त-पश्चरल्
साकाररूप धारण करना अलौकिक है, ऐसे ही उनके कर्म भी
अलौकिक है-अजुनसे स्वय भगगान्ने कहा भी है कि “जन्म कर्म-
च मे दिव्यम् ।” जो सच्चे भक्त होते हैं, वे भी भगवान्की शक्तिको
पाकर अलौकिक कर्मी हो जाते है । अतएव भगवान् और उनके
सच्चे भक्तोके अप्राकृत दीखनेवाले कर्मोमि किसी भी श्रद्धाछुको कभी
सन्देह नहीं करना चाहिये ! अस्तु !
सूर्योदय होते ही रघुकी भॉखे ख़ुलीं, देखते ही वह
चौकना-सा हो गया और मन-ही-मन कहने लगा- “मैं कहा आ
गया * सिंहद्वार तो नहीं है * यहाँ तो पुरीकी कोई भी बात
नजर नहीं आती । स्वप्न तो नहीं देख रहा हूँ * यह कौन सा
झाहर है * सामने ही यह सुन्दर महल किसका हैं ! यहाँ तो
कोई जान-पहचानका आदमी भी नहीं दीखता *'
विवाहके बाद रघुनाथ कभी यहाँ नहीं आया था, इससे बह
यह नहीं पहचान सका कि यही मेरी ससुराल हे । कुछ दिन
चढनेपर आने जानेवाले ठोगोसे उसने पूछा कि, “भाई ! यह
कौन-सा दाहर है * यह बडी भारी इमारत किस सेठकी है ”
लोगोने कहा, “इस झहरका नाम कठावतीपुर है और यह्व प्रासाद
श्रीमान् गगाधघर करणका है ।' नाम सुनते ही रघुके आश्वयंका
कोई पार न रहा, वह उसी क्षण भगवत्-प्रेममें डूब गया, उमके
नेत्रोंसे प्रेमाश्रुओकी अखण्ड धारा बहने लगी । उसने मन ही-मन
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