भक्त - पञ्चरत्न | Bhakt Pancharatn

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Bhakt Pancharatn  by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भसक्त-पश्चरल् साकाररूप धारण करना अलौकिक है, ऐसे ही उनके कर्म भी अलौकिक है-अजुनसे स्वय भगगान्‌ने कहा भी है कि “जन्म कर्म- च मे दिव्यम्‌ ।” जो सच्चे भक्त होते हैं, वे भी भगवान्‌की शक्तिको पाकर अलौकिक कर्मी हो जाते है । अतएव भगवान्‌ और उनके सच्चे भक्तोके अप्राकृत दीखनेवाले कर्मोमि किसी भी श्रद्धाछुको कभी सन्देह नहीं करना चाहिये ! अस्तु ! सूर्योदय होते ही रघुकी भॉखे ख़ुलीं, देखते ही वह चौकना-सा हो गया और मन-ही-मन कहने लगा- “मैं कहा आ गया * सिंहद्वार तो नहीं है * यहाँ तो पुरीकी कोई भी बात नजर नहीं आती । स्वप्न तो नहीं देख रहा हूँ * यह कौन सा झाहर है * सामने ही यह सुन्दर महल किसका हैं ! यहाँ तो कोई जान-पहचानका आदमी भी नहीं दीखता *' विवाहके बाद रघुनाथ कभी यहाँ नहीं आया था, इससे बह यह नहीं पहचान सका कि यही मेरी ससुराल हे । कुछ दिन चढनेपर आने जानेवाले ठोगोसे उसने पूछा कि, “भाई ! यह कौन-सा दाहर है * यह बडी भारी इमारत किस सेठकी है ” लोगोने कहा, “इस झहरका नाम कठावतीपुर है और यह्व प्रासाद श्रीमान्‌ गगाधघर करणका है ।' नाम सुनते ही रघुके आश्वयंका कोई पार न रहा, वह उसी क्षण भगवत्‌-प्रेममें डूब गया, उमके नेत्रोंसे प्रेमाश्रुओकी अखण्ड धारा बहने लगी । उसने मन ही-मन




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