संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास | Sanskrit Ka Kavyashastra Ka Itihas

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Sanskrit Ka Kavyashastra Ka Itihas  by महामहोपाध्याय पी॰ बी॰ काणे -Mhamahopadhyay P. B. Kane

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है 83151569) शीर्षक लेख। जैसा कि ऊपर बता चुके है अग्निपुराण (बिबलियोथेका इस्हीका सस्करण) के अध्याय २३६-२४७ मे अलख्ारशास्त्र के विषयों का वर्णन है। अध्याय ३३६ में (आनन्द ३३७) काव्य के लक्षण , प्राकृत और संस्कृत के रूप में उसके दो भेद, प्रत्येक के तीन प्रकार--गद्य, पद्य और मिश्र; सबके उपभेद, कथा, आख्यायिका तथा महाकाव्य के लक्षण । अध्याय ३३६ मे नाटय-सम्बन्धी विषयों का वर्णन है--रूपक के दस प्रकार, उपरूपक, प्रस्तावना, पाँच प्रकृतियाँ, पाँच सन्वियाँ इत्यादि । अध्याय ३३८ मे निम्न- लिखित विषयों का विवेचन है--रस, स्थायीभाव, अतुभाव, व्यभिचारिभाव, आलम्बन-विभाव, उद्दीपन-विभाव, नायक-भेद, नायक के सहचर, नायिका-भेद नायक के आठ गुण और नायिका के बारह विभाव। अध्याय रे३९ मे चार रीतियों पाज्चाली, गौडी, वंदर्भी, लाटी) और वृतियों भारती, सात्त्वती, कौशिकी (कैशिकी ? ), तथा आरभटी का निरूपण है । अध्याय ३४० में नत्त का निरूपण है और यह बताया गया है कि हाथ, पैर आदि स्थूल तथा पलक आदि सूक्ष्म अज्ञो का संचालन किस प्रकार होना चाहिए । अध्याय ३४१ में चार प्रकार के अभिनय (सात्तिक, वाचिक, आज़िक और आहार) का विवेचन है। अध्याय ३४२ का विषय है शब्दाल डर, उसका लक्षण तथा सेद-प्रमेद अनुप्रास, यमक के दस प्रकार, चित्रकाव्य के सात भेद, प्रहेलिका के सोलह भेद, गोमूत्रिका, स्वतोभद्र आदि बन्घ । अध्याय ३४३ के विषय हैं उपमा, रूपक, सहोक्ति आदि अर्थालख्वार, अनेक लक्षण और उनके भेद । अध्याय ३४४ का प्रतिपाद्य विषय उभय अर्थात्‌ शब्दार्थालद्ार बताया गया है, किन्तु उसमे आक्षेप, समासोक्ति, पर्यायोक्ति आदि अलछख्ारो का विवेचन है । अध्याय ३४५ और २४६ मे काव्य के गुणों और दोषों का वर्णन है । इनमें कुल मिलाकर ३६२ इलोक हैं । अग्निपुराण के ११५०० इलोको मे वर्णित विषयों का सक्षिप्त विवरण भी यहाँ स्थान संकोच के कारण शक्‍्य नही है। मध्यकालीन भारत मे जो विषय स्वेसाघारण मे रुचिकर थे अग्निपुराण उनका विश्वकोष है । विशेषरूप से एतदन्तर्गत साहित्य विभाग का इस पुराण द्वारा तिथिनिणेय करने तथा इसे अलडूार शास्त्र का प्राचीनतम ग्रन्थ निर्धारित करने के लिए निम्नलिखित आधार प्रस्तुत किये जाते है -- (क) अग्निपुराण (३२७, 7 ३३६, २२) में रामायण के सात खष्डों, हरिबंशा और पिंगल का उल्लेख है। इसी प्रकार पालकाप्य, शादि होत्र,




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