साहित्य | sahity

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sahity by रवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravindranath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारी इन सब बातोंके कददनेका तात्पय यही है कि इमारे भावोंकी सष्टि कोई खामखयाली चेष्टा नहीं दे। यह वस्तु-सष्टिके समान ही अमोघ नियमोंके अधीन दै। प्रकाशके जिस आवेगको हम बाह्य जगतके समस्त अणु परमाणुओंके अन्दर देखते हैं, वही एक ही आवेग हमारी मनोदृत्तियोंकि अन्दर प्रबल देगसे काये कर रहा है। इसलिए जिन आँखोंसे इम पबेत-जजरू, मद-नदी, मस्भूमि और समुद्रको देखते हैं, साहित्यको भी उन्द्ीं आँखोंसे देखना पढ़ेगा--यद भी हमारा तुम्दारा नहीं दै---यह भी निखिल सृष्टिका एक भाग है । सादित्यसुष्टि, पू० ८७ सत्यको जहाँ मनुष्य स्थूलरूपमें अथोत्‌ आनन्दरूपमें, अग्तरूपमें प्राप्त करता है, वद्दीं अपने एक चिक्कको खोद देता है। घह चिह्न ही कह्दीं मूर्ति, कहीं शी कहीं तीर्थ और कहीं राजधानी दो जाता दे. । साहित्य भी यही भ सौन्दर्यबोध, टू० ४४ ८




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