अधूरी तस्वीर | Adhuri Tasvir
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
91
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बहने पर 'कि वह क्यों एक उजड़े ध्यक्ति की तरह जीवन काट रहा है सो
बह बोला 'फि व बसने को रह हो कया गया दै ?”
भोजन पर तेने को पद दिचाई तो बोला, 'प्रंव जीते से साम ही
गया है ?'
जब बोलो, यू शरोर को कप्ट देकर दुछ ने पामीरो देवेश ।
नो दूडे हुए स्वर में उसने कहा, “वास को प्रव रह ही कया गया
है रै लुट तो पुका हू दीच् दाजर मे 1
उसके उत्तर सुन-्युन कर मैं प्रायुपों का दरिया बह्ढाती रदी, पर
बहू दरिया के बोच यपेड़े खाए पत्यर को तरहू न श्पिला 1
इस तरह पोहर में मैंने एक सम्चा समय काठ दिया । तेरे जीजा
के पत्र बरावर ध्राते रहते, जद भापो ।' पर मैं गपुराल घौर पीहर बातों
को कमी कोई बहाना बनी कर भर कभी कोई वद्ाना ना फर सनाती
रहती । पर सत्य यहीं था दि मैं देवेग की दित श्रतिदित बिंगढती देखा देत
भर, उसे छोड़ कर धला जानां प्रपनों दाल से बाहर की यात शममती 1
भासिर एक दिन पिताजी मुझ पर गरजे पे, बया हू ससुसात महीं
भायेगी ? सुझें पता नहीं कि थे लोग बेट्रदो यातों पर उतर पाए हैं ।'
मैं मो को गोद में सिर छुरा कर रो पड़ी घोर रोते शोने ही हैंने
धसुशल में घटों सारी पु: पटनायें सुता दो थी । तभी मां के गर्म-गर्म
भामू मेरे गाल पर थिरने सगे । होते हुए दे स्ितियजों परे भर्शएं स्वर में
शद्धी, “प्ौर दो पपनी बेटियों को ऊं ये खानदान में 1 तभी हैमे गाथ-
साफ कह दिया था कि सानदानि-वनिदाय दा बस्तर एोई शरद मुस्य दाग
पहु देखी शि पा कसा है ? उपक्ो स्यय की स्पिति बसा है हर हे
हाय री विरमत ।” पिता को, माया टोकते हुए दोहे, सिदा
कषे गानदान ये घहवर में पह कर दते धपनों देटी का हो गउ़ा धॉट
दिया है पद कसी सानदाक-वानदातन, जिन विराइरो के इस से
नपइुया।
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