अर्थवाद का स्वद्या -९ | Arthvad Ka Swadya-9
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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थ सपरनहनमपभ घतेन काम शिक्षांसि हॉविपाउयेन ।
जि नीचे सुपत्नाव् मर्म पादय सवमुभिष्टुतों महता चीरयें[ण ॥ १॥
है
श यन्मे मनसो न प्रिय न चक्ुपो यन्मे घमास्ति नाभुनन्दाति ।
श तद् दुष्यप्न्य प्रति मुश्वामि सपत्ने काम स्तुत्वोदहदं मिंदेयमू ॥ २ ॥!
ही
है. सअर्भ-( सपत्नहन ऋषपभ काम ) भायका नाश करनेवाले बलवान
£ काम को सं ( एदिपा आज्येन घुलेन शिक्षामि) हवि घी आदिखे शिशित
६ फरता हू । ( महता चायण आभषत। ) पड़े पराक्मस म्रसातत हाकर
हू (स्व) तू (सम सपत्नान् नीचे: पादय ) मेरे शा्युओंको नीचे कर
ह दे0र॥
है. (यत ने सनस। न प्रिय ) जो सेरे सनको प्रिय नददीं हैं, (यत से चक्लुष।
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जो सेरे आंखोंकों प्रिय नहीं है, ( यमु से यसस्ति ) जो मेरा
(सं ति)न सुझ जानन्द देता है, (तत्
( सपत्वे घतिघुासि ) शायके ऊपर सेज देता
हुं। (अह काम स्तुत्दा ) में काम की स्तुति करके ( उत सिदेय॑ ) ऊपर
उठना हु ॥ २ ॥
सादाध-कास ( खंकरूप ) घडा घलवान है आर शाजुका नाया करने+
चाला है, उसको यज्नसे शिस्सिन करना चाहिये । दद्द वडे चीपेसे प्रचयंसित
इज तो शन्ओंकफों नीचे करता है ॥ १ ॥
का... जेभ.
जो सरे मन और अन्य इंद्रियोंको अपधिय है, जो सुनने आानंदिन नहीं
करना, जो मेरा निरस्कार करता हैं, चह्द दुपछठ स्वप्न मेरे शाय्यकी सो
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जादे । सें इस सकल्पदात्तिक द्वारा उन्नत होता टू ॥ २ ॥
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