वीर पठावाली | VEERPATHAVALI

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Book Image : वीर पठावाली  - VEERPATHAVALI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'ऋषभदेवे मोर भरत | [श्ण्‌ सर्वेज्ञ होकर ऋषपभदेवजीने सर्व प्रथम परलोक सम्बन्धी ज्ञानका उपदेश जगतजनोंको दिया-उन्हें आत्मस्वातंत्यताकी मार्ग सुझानेके छिये कऋषभ प्रसुने देव-विदेशमें विहार करके धर्माठतकी वर्षा की ! छोगोंके ज्ञान-नेत्र खुल गये । विवेकने उन्हें छोकका चास्तविक रूप दिखा दिया ! बहुतेरे खरी-पुरुप घरबार छोड़कर साधुधमं पालनेके छिये मगवानके साथ होगये। अन्य लोगोंने सदस्थ रहकर ही यथा- झाक्ति धर्म पाठनेका उद्योग किया ! फठतः पहले धर्म-संघकी स्थापना ोगई और भगवान, ऋषभदेव पहले तीथकरके नामसे प्रस्यात होगये। उनका बताया हुआ धर्म आज जेन धर्मके नामसे असिद्ध है । जिस समय ऋषभदेवजीकों केवलज्ञान हुआ था, ठीक उसी समय सम्राटू भरतको पुनरत्नकी आाप्ति हुई थी और उनकी आयुषशालामें चक्र-रतन भी उत्पन्न होगया था । इन तीनों हबे-समाचारोंको . एक साथ पाकर भरतमहाराज बड़े प्रसन्न हुये और सबसे पहले भगवानकी चन्दनाके लिये चल पढ़े । उपरान्त वह आये-अनाय॑ लोगोंको सम्य और धार्मिक वनानेकी नियतसे दिखिजय करनेके लिये सेना सजा- कर निकल पड़े और छहों खण्ड श्थ्वीको उन्होंने जीत छिया । एकमात्र उनके भाई बाहुबछिने ८नका कहना. नहीं माना । इस कारण सिफ दोनों भाइयोंमिं युद्ध हुआ; जिसके परिणाम स्वरुप बाहुवलिकों वैराग्य होगया और वह दक्षिण-भारतकी ओर तपस्थां करनेके. लिये चले गये । भरत अयोध्याको लौट आये। । . ' अंब भरत महाराजको दानपुण्य करनेका भाव हुआं । घस, उन्हेंने क्षत्रिय, वैद्य और झद्र दणीरेसे घर्मात्मा छोगोंको-छांट छियो




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