प्रेमदीप | Premdeep
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
119
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उसने बिखरे मोतियों से जगमगाते तारों और नीले आकाश के समुद्र में चांदी की
नाव की तरह तैरते हुए चांद को देखा । उसने बादल, इन्द्रधनष, चट्टानें और
दूर-दूर तक फैली पवेत श्पखलाओं को देखा था । गाते पक्षियों, गुनगुनाते झरनों
भौर धान के खेतों में सरगम छेड़ती पवन को सुना था । सकक््सैना साहिब कुछ दिनों
के लिए कहीं बाहिर गए थे । गेंद की तरह फूदकती हुई एक बालिका द्वार पर भाई ॥
पस्तक से नज़र उठा कर रतन कौतृहलवश उसे देखने लगा ।
“*आपको दीदी ने बलाया है ।”” बालिका रतन से सम्बोधित हुई ।
**दीदी कौन ?” उसने जिज्ञासा की ।
“आप दीदी को नहीं जानते हैं” चकित सी होती हुई उस लड़की ने पूछा ।
“अपनी दीदी का नाम बताओ तब पता चलेगा ।”
“न्ताम ! नाम तो मैं भी नहीं जानती ।””
“अरे ! तुम अपनी दीदी का नाम भूल गईं ।””
*व्दीदी को मैं दीदी कह कर ही पुकारती हुँ । नाम कभी नहीं लेती । नही
पूछा है । वे यहां कम आती हैं । आती हैँ तो जल्दी चली जाती हैं ।””
शीघ्र चली जाती हैं । कहां ?”
“वह किसी बड़े शहर में पढ़ती है ।
उस भोली बालिका की बातें रतत के लिए पहेली बन गई थीं । असमजस
में पड़े हुए उसने पूछा, कहां है तुम्हारी दीदी इस वक्त ?””
““अपने कमरे में । वहां, सामने ।””
रतन को कछ बात समझ आ गई थी ।
तो बाओगे न ?”'
“तुम्हारा कहना तो मानना ही पड़ेगा ।””
“मेरा नहीं दीदी का, उसने जल्दी आने के लिए कहा है ।” फुदकती हुई वह
. वहां से भाग विकली । रतन सोच में पड़ गया । उसे क्यों बलाया गया है । हो सकता
है गाड़ी द्वारा उमिला ने कहीं जाना हो । एक दो दफा जब उसका उससे सामना
हुआ था तो उसके बदलते हुए हाव भाव और चेहरे के रंगों ने रतन के मन में संदेह
सा उत्पन्त कर दिया था । काम कोई और भी हो सकता है । उसका फर्ज़ था कि
_ बहू जाए । उठकर रतन वस्त्र बदलने लगा |
ः “आप ने मुझे बुलाया है ?” रतन ने पूछा । द्वार पर झूमते हुए पर्दे के पास
. बह खड़ा था ।
'. “हां ।*
. आज्ञा दीजिए ।””
* अन्दर चले आओ न ।”
दा रतन द्वार के अन्दर चला गया । सिकुड़ता-सिमटता सा वह एक भर खड़ा
गया ।
15.
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