संत वाणी ढाई हजार अनमोल बोल | Sant Wani Dhai Hajar Anmol Bol
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). खंत-चाणी श्द
७५४-इंश्वरका प्रकाश सबके हृदयमें समान होनेपर भी वह
साघुओंकि इृदयमें अधिक प्रकाशित होता है ।
५५५६--समाधि-अवस्थामें मनको उतना ही आनन्द मिलता है,
जितना जीती मछलीको तालाबमें छोड देनेसे |
५६-ज्ञान पुरुष है; भक्ति खरी है । पुरुष मायानारीसे तभी
छूट सकता है जब वह परम वैरागी हो । किन्तु भक्तिसे तो माया
सद्दज ही छूटी हुई है ।
५५७-कांजलकी कोठरीमें कितना भी बचकर रहो; कुछ-न-
चुछ कसौंस लगेगी ही । इसी प्रकार युवक-युवती परस्पर बहुत
सावधानीसे साथ रहें तो भी कुछ-न-कुछ काम जागेगा ही ।
५८-जिस प्रकार दर्पण खच्छ होनेपर उसमें मु दिखलायी
देने ठगता है, उसी प्रकार हृदयके खच्छ होते ही उसमें मगवान्का
रूप दिखायी देने लगता है ।
५९-इंद्रको अपना समझकर किसी एक भावसे उसकी
सेवा-पूजा करनेका नाम भक्तियोग है ।
६०-कलियुगमें और योगोंकी अपेक्षा भक्तियोगसे सहज ही
ईस्वरकी प्राप्ति होती है ।
६१-ध्यान करना चाहते हो तो तीन जगदद कर सकते हो-
मनमें; घरके कोनेमें और वनमें ।
६२-केवरू ईद्वर-ज्ञान ही ज्ञान है और सब अज्ञान है।
६३-भगवान् मक्तिके वश हैं; वे अपनी ओर ममता शर
ग्रेम चाहते हैं । ू
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