ज्ञानाणंवः | Gyananarva (1981) Ac 6132
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
459
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ४)
संदोह ग्रंथ समाप्त किया था, इसलिये मुजका राज्यकारू विक्रम संवत् १०५० मान लेनेमें किसी
प्रकारका संदेह नहीं रह सकता । इसके सिवाय श्रीमेस्तुज््सुरिने भी अपने प्रबन्धचिन्तामणि
प्रन्थमें जो कि विक्रम संवत् १३६१ [ई० स० १३०५] में रचा गया है, इस समयको,हंकारहित कर
दिया है। प्रबन्धचिन्तामणिमें लिखा है :--
विक्रमाह्ासरादष्टसुनिव्योमेम्दुसं मिले ।
वर्षे युखपदे भोजसूप: पट्टें निवेधित: ५
अर्थात् विक्रमु संवत् १०७८ (ई० स० १०२२) में राजा मु जके सिंहासनपर महाराज भोज
बैठे । अर्थात् श्रीअमितर्गतिसूरिके लिखे हुए संवत्त् १०९० से १०७८ तक मु जमहाराजका राज्य
रहा, पश्चात् भोाजको राजतिलक हुआ । और श्रीविष्वभूषणसूरिके कथानकके अवुसार यही समय
श्रीशुभचन्द्राचार्यका था ।
भोज
मुंजका समय निर्णीत हो चुकने पर भोजके समयके विषयमें कुछ शंका नहीं रहती ।
क्योंकि मुंजके सिहासनके उत्तराधिकारी महाराज भोज हो हुए थे । अतएव प्रबन्धचिन्तामणिके
आधारसे संवत् १०७८ के परचात् भोजका राज्य वाल समझना चाहिये । अनेक पाइचात्य विद्वानोंका
भी यही मत है कि ईसाकी ग्यारहवी शताब्दीके पूर्वाधंगें राजा भोज जीवित थे । श्रीमोजराजका
दिया हुआ एक दानपत्र एपिग्राफिकाइंडिकाके ००००८ 177, £ 48-50 में छपा है, जो विक्रम
सं० १०७८ (ई० सनु १०२२) में लिखा गया था । उससे भी भोजराजका समय ईसाकी ग्यारहवीं
झताब्दीका पूर्वारघ॑ निद्चित होता है। बुहद्द्व्यसंग्रहकी संस्कृतटीकाकी प्रस्तावनामें श्रीब्रह्मदेवने
एक लेख लिखा है, जिससे विदित होता है कि श्रीभोजदेवके समयमें हो श्रीनेमिचन्द्रसिद्धान्त-
चक्रवर्ती हुए हैं। वह लेख यह है :--
सालवदेशे घारानामनगराधिपतिराजभोजदेवानिधानकलिकालचफ्रवतिसम्बन्धिन: ओोपाल-
मण्डलेदवरस्य सम्बन्धिस्याथ:अमनामनगरे श्रीमुनिसुब्रतलीयंकरचेत्यालये शुद्धार्मश्रव्यसंवितति-
समुत्पझसुखामृतरसास्वादधिपरीतनारकादिदुःखभयभीतस्थ परमात्मभावनोत्पन्रसुखसुधारसपिया-
सितस्य भेदाभेवरत्नतयभावनाप्रियस्य भव्यवरपुण्डरीकस्य भाण्डागारादनेकनियोगाधिकारिसो-
सामिधानराजश्रेष्ठिनों निमित्तं छोनेसिचससिद्धान्तिदेवे: पूर्व धर्डविशतिगाधाभिलंघूदव्यसंग्रह
हक दपादरकासारनाग विरशितस्य बहदुदव्यसंप्रहस्याधिकारदुद्धिपूबंकत्वेन वृत्ति:
प्रारम्यते।
इसका सारांदा यह है कि, मालवदेवा-धारानगरीके कलिकालूचक्रवर्तराजा भोजदेवके
सम्बन्धी, मंडलेशवर राजा श्रीपालके राज्यान्तगंत आश्रम नामक नगरके मुनिसुब्रत भगवायुके
चेत्यालयमें सोम राजश्रेष्ठीके नि्मित्त श्रीनेमिचन्द्रसेद्धान्तिकदेवने द्रव्यसंग्रह भ्रस्थ बनाया था ।
इससे श्रीनेमिचन्द्रकी ओर भोजकी समकालीनता प्रकट होती है। परन्तु श्रीनेमिचन्द्रके समयका
१. श्रीअमितगत्याचार्यने धर्मपरीक्षानामक भ्रस्थ संबत् १०७० में पूर्ण किया है, परन्तु खेद है कि,
उसकी प्रशास्तिमें मु जके विषयमें उन्होंने कुछ नहीं लिखा ।
२. श्रीमद्राजचंद्र जैन दास्त्रमालके द्वारा यह प्रत्य छप चुका है।
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