एक्युप्रेशर के द्वारा आप ही अपने डॉक्टर | Ekyupresher Ke Dvara Aap Hi Apane Doctar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३. एक्युप्रेशर का विज्ञान
भारत, चीन, जपान आदि देशों में अनादि काल से जीवन को एक जीव-विद्युत्
प्रक्रिया (एं0८600ं८ एफलाणएटाणा) माना गया है। अर्थात् हमारा जीवन
शरीर-स्थित जीव-विद्युत् शक्ति पर निर्भर है। इस शक्ति के कारण ही हम हिल-डुल
सकते हैं, साँस ले सकते हैं, खाया हुआ पचा सकते हैं और मस्तिष्क से विचार कर
सकते हैं। इस शक्ति को हम 'प्राण' कहते हैं, चीनी लोग इसे 'ची' कहते हैं। यह
शक्ति दो प्रकार के बलों से निष्पन्न होती है-यिन और यांग। थिन ऋण
(168४८) वल है जब कि यांग धन (0अंध४6) बल है। शरीर में यदि इन दो
वलों में मेल-जोल, संवाद और संतुलन हो तो मनुष्य स्वस्थ रह सकता है। जब इस
संतुलन में विक्षेप पड़ता है अर्थात् शरीर में एक बर अधिक मात्रा में तथा दूसरा बल
कम मात्रा में प्रवाहित होता है तब रोगों का प्राटर्भाव होता है। थे बल शरीर में
विशेष मार्गों से होकर वहते हैं। इन मार्गों को हम 'मेरिडिअन' कहेंगे। चीनी लोग
इन्हें 'जिन्ग' कहते हैं।
प्राण के वहन के लिए हमारे शरीर में कुल १४ प्रमुख मेरिडिअन माने गये हैं।
इन १४ मेरिडिअनों में से १२ मेरिडिअन दो-दो की जोड़ियों के रूप में रहते हैं,
जिसमें से एक शरीर की दाहिनी ओर तथा दूसरा वायीं ओर होता है। बाकी के दो
मेरिडिअन स्वतंत्र रूप में हैं-एक शरीर की आगे की खड़ी मध्य रेखा पर और दूसरा
शरीर की पीछे की खड़ी मध्य रेखा पर।
जोड़ियों के रूप में रहने वाले १२ मेरिडिअनों में से ६ यिन मेरिडिअन और ६
यांग मेरिडिअन हैं। यिन मेरिडिअन पैरों की उंगलियों अथवा शरीर के मध्यभाग से
शुरू होते हैं तथा सिर की ओर या हाथ की उंगलियों की ओर ऊपर जाते हैं। दूसरे
यांग मेरिडिअन सिर, मुँह या हाथ की उंगलियों से शुरू होकर जमीन की ओर या
शरीर के मध्य भाग की ओर नीचे जाते हैं। ( देखिए- चित्र ३०१ और ३२)
प्राण-शक्ति का परिभ्रमण जारी रखने वाले ये मेरिडिअन शरीर के मुख्य
अवयवों या तंत्रों एवं उनकी कार्यप्रणाली से संलग्न हैं। जो मेरिडिअन जिस अवयव
के साथ संलग्न हो उसे उस अवयव का नाम दिया गया है। किसी भी मेरिडिअन का
एक सिरा हाथ, पैर अथवा मुँह में और दूसरा सिरा किसी एक मुख्य अवयव में रहता
है। यही कारण है कि हाथ या पैर के किसी एक विन्दु को दबाने से उस बिन्दु से
संलग्न दूर के अवयव में प्रभाव निष्पत्न हो सकता है।
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