प्रार्थना सभाओं में गाँधी जी के भाषण | Prathana Sabhawo Mein Gandhi Ji Ke Bhashan Part 3

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : प्रार्थना सभाओं में गाँधी जी के भाषण - Prathana Sabhawo Mein Gandhi Ji Ke Bhashan  Part 3

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
इस चीज़ को क्यों देखता हूँ ? अगर तू नहीं डठाता और चाहता है कि द्मुककको जिन्दए रददना है तो कम ले कम वह ताकत तो सुकको दे दे जो में एक वक्त रखता था । सु ऐसा गुमान था कि में लोगों को समका सकूँगा । लोगों के पास आया श्र कहा खबरदार इस तरह से न करना तो वे समक जाते थे उनके दिल में मेरे प्रति इतनी सुदब्बत थी। में नहीं कहूँगा कि -झाज मेरे लिये लोगों के दिल में सुदब्बत कम दो गयी है । सगर कम हो या वेसी उसके पीछे तो अमल होना चाहिए । वह नहीं दे + तो में कहता हूँ कि मेरा असर चज्ञा गया है । जब दस गुलामी में थे तब तो मेरा कास अच्छा चलता था लेकिन अब जब इम आजाद दो गए हें तब मेरा काम नहीं चलता । जो पाठ मैंने प्रजा को उस चक्त सिखाया था में तो वही पाठ आज भी दे सकता हूँ । अगर चह्द पाठ शझाज झाप ले लें तो दम खूब श्रागे बढ़ जाते हैं । में कहना तो यह चाहता था कि आप लोगों के ल्षिए अब जाड़े के दिन आते हैं। मेरे लिये तो झाप देखते हें यह गरम चादर ये लड़कियाँ लेकर श्राई हैं कि शायद सुमकको दंड लगे । खाँसी भी दै इस वक्त कम दे सो यद्द सूती चादर काफी है । लेकिन वे जो यहाँ केम्पों में पढ़े हैं पुराने किले में पढ़े हूं उनका क्या ? अप कह सकते हैं कि मुसलमानों को हम क्यों दें? में तो ऐसा नहीं बना हूँ। मेरे लिए तो सुसलमान भी वही हैं सिक्ख भी वही हैं पारसी भी वही हैं ईसाई भी वही हैं। में ऐसा मेद॒ नहीं कर सकूँगा । इन जाड़े के दिनों में उन सब का क्या होगा ? झगर हम यह कहें कि यह तो हुकूमत का काम दै हुकूमत उन्हें जाड़े के दिनों में कम्बल दे देगी तो में झापको कहता हूँ कि हुकूमत नहीं दे सकेगी । हुकूमत कोशिश तो करेगी लेकिन श्राज हमारे पास वह स्टाक कहाँ दे ? हुकूमत कम्बल कहाँ से निकालेगी ? छू मंतर करके उनके पास था जाता हो ऐसे नहीं बनते । झ्राज सारे योरुप में अमरीका में भी वह चीज़ नहीं मिलती । हमको वहाँ से कोई वस्सु भेज नहीं सकते । कुछ रहम करके कोई भेजे भी तो दस बीस हज़ार कम्बलों से कया होगा ? यहाँ तो लाखों लोग पढ़े हैं ऐसे हर एक को थोड़े ही मित्र सकते हैँ । में जितने थ्राप लोग हें सब से कहूँगा कि जाड़े के दिनों में वे सर्दी को बर्दाश्त करते रहें यह ठीक नहीं इसके साथ आप अपने सब कम्बल भी नहीं दे सकते । लेकिन में जानता हूँ कि हमारे पास बहुत से लोग ऐसे पढ़े हैं जो भ्रपने लिए कम्बल रखते हैं श्र जितने चाहिएँ उससे ज्यादा रखते हैं। दिल्‍ली में काफी गरीब पढ़े हैं जिन्दें सुसीबत से कम्बल मिक्षते दें । ज़ितने कम्बल आप बचा सकते हैं उन्हें दे दें । 5८




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now