भोजपुरी लोकगाथा | Bhojapuri Lokagatha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
380
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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महू का पान, बनारसी साड़ी, मिर्जापुर का लोटा, पढने की चोली श्रौर गोरखं-
पर का ह्ाथी' लाता है । लोकगाधाओं फे वीर श्रनेक सगरों और गढ़ों पर
आराक्रमण करके विजय प्राप्त करते हैं। इस प्रकार से हस लोकसाहित्य द्वारा
तगर, सदी, किला, गढ़ श्रौर प्रसिद्ध व्यापारी केन्द्रों से परिचित होतें हैं ।
लोकसाहित्य हुगे समाज के श्राधिक-स्तर का भी विधिवत् ज्ञान कराता
है। लोकसाहित्य भें साधारण ग्रामीण समाज का खानपान, रहन-सहुन तथा
रंतिरिघाज इत्यादि का परिचय मिलता है। लोकगीसों की साला सोने के कटोरे
में हूँ शिशुत्नों को दूध भात खिलाती ह। नायिकाएं धक्षिण की चीर, चस्द्रहार,
बाजूब्द सौर मागटॉका पहुनती हू । भाजन से भातमती चावल, मूँग की दाल,
पड़ी, पूरा शरीर छत्तीस रकम की चटनी ही परोसा जाता हूं । इससे यहू स्पष्ट
हुवा हूँ कि लाकसाहि्य के द्वारा समाज की झाथिक प्रवस्था से हम भली-
भांधि पर्शिचत हो सकते हूँ ।
मुशास्न (म्रस्थपालीजी) के लिए लाकसाहित्य में अध्ययन की सामग्री
भरी पढ़ा हूं। विभिन्न जातियों आर उनके नियमारदि का वर्णन लोकसाहित्य में
भी भांति मिलता हूं। माजपुरी प्रदेश से बावी, सेटुसा, दुखाध, चमार, कमकर,
मह्लाह, गांड, घरकार इस्नाद अनक जातियां बसती हूं । इन जातियों के
अध्ययन के लिए लीकसा हित्य से बढ़कर कोई विपय नहीं हुंता ।
लोकसाइित्य में घामिक जीवन का ब्योरेवार चित्र मिलता है। देवी-
देवताओं की कद विर्वां, अनेक प्रकार के ब्रत-उपबास, पुजापाठ, तथा मंत्र-तंत्र
इत्यादि का सांगापाग वर्णन लाकसाइत्य मे पाप्त होता है। इनसे हम किसी
समाज की धामिक श्रवस्था का. बिस्तृत जान प्राप्त कर सकते हूं ।
लोकसाहित्य का संबंध भापा-शास्त्र की दृष्टि से भ्रत्यन्त महत्वपूर्ण हूँ ।
लोकसाहित्य में भाषा-शास्त्र के श्रध्ययन के लिए श्रक्षयमण्डार भरा पड़ा है।
जटिल भावों को व्यक्त करने के लिए लॉकसाहित्य में सरल एवं सहज सटीक
दाब्द भरें पढे हैं । इनसे हम श्रपने साहित्य का भडार भर सकते हूँ । इन दाब्दों
की व्युत्पत्ति भो बड़ी रंचक होती हे। इन दाब्दों के प्रयोग से हम उक्त समाज
के बौद्धिक स्तर को भी जान सकते हूँ। लॉकसाहिस्य में मुहदावरे, कहावत
तथा सुक्तियों की भरमार रहती हूं । इन्हें सुसंस्कत साहित्य में सम्मिलित
कर भाषा को प्रभावदाली एवं लोकोपयोागी बनाया जा सकता हू।
इसी प्रकार से लोकसाहित्य के श्रष्ययन से हमे नेतिक, सनोवेशानिक,
भाध्यात्मिक धथा भौतिक-शास्त्र सम्बन्धी तथ्य भी उपलब्ध हा सकत हूं । लाकें-
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