आखिर जो बचा | Aakhir Jo Bacha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तिनके का क्या मूल्य ?
पदिचम में लाल सूरज जम्हाई लेकर दूसरी दुनियां में मूद्धित हो गया तो
उस वातावरण में बचें थे केवल काले बादल जो दिन के साथ लगाव रखते
हुए रात्रि को टटोल रहे थे । तारे डरते हुए से चमक रहे थे । पूंछ हिलाते
अजगर सी धघूमकर वह छोटी नदी कहीं दूर जा छिपी थी । नदी के किनारे
झाड़ियों के बीच बेठा दयानिधि आकाश कीं ओर देखकर मन ही मन हंसने
लगा । हवा की एक हल्की सी लहर ने उसके तन को छू कर एक विचित्र
सी अनुभूति दी । प्यास के साथ तन विकसित होता है, तो हवा दारीर में
उमंग और उत्साह भर कर रक्त को स्पंदित करती है और उसे नये नये
मार्गों की ओर ले जाती है और अंग अंग में तंद्रा सी छा जाती है, आंखें केवल
देखना छोड़ कर गहराईयों का दर्शन करती हैं ।
पहिचम- में भरता हुआ लाल घाव, रात्रि का अन्वेषण करने वाले मेघ,
निभंय होकर चमक रहे नक्षत्र, एछ हिलाना बंद कर निइ्चल पड़े अजगर सी
नहर, पवित्र भाव से झूम रही झाड़ियां, मूक भक्तिवश हो मौन प्रकृति, उन
सबके साथ वह स्वयं, सभी एकाकार हो उठे थे, क्षण भर के लिए चेतनता
खोकर इस प्रकार जड़ हो गये थे मानो इस विद्व से उनका कोई संबंध ही न
रह गया हो ।
अबेर हो गयी । घर चलो छोटे बाबू ।''
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