अनुसूचित जाती की महिलों की समस्यां के निदान मई प्रकॉत परंपरागत सामाजिक | Anuchait Jati Ki Mahilon Ki Samsayan Kay Nidan May Prakaut Paramparagat Samajic

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Anuchait Jati Ki Mahilon Ki Samsayan Kay Nidan May Prakaut Paramparagat Samajic by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धर पति एवं पत्नी के सम्बन्धों में इतनी अधिक समानता, घनिष्ठता एवं माधुर्य के होते हुये भी पितृ प्रधान वैदिक समाज में पति की प्रभुता ही मानी जाती थी। ए.एस. अल्तेकर के अनुसार- “तदूयुगीन समाज में पत्नी की पति के प्रति अधीनता आदरभाव से पूरित थी। इस अधीनत्व के बावजूद पत्नीयाँ तदयुगीन गुहों का आभूषण मानी जाती थी और पत्नी ही पूरे गृह का संचालन करती थी एवं दास आदि लोगों को उचित कार्यों में प्रवृत्त करती थी। वेदयुगीन नारी मातृपुरुष देवी के समान पूज्य मानी जाती थी। पत्नी को “जाया का अभिधान प्रदान कर हमारे आर्य मनीषियों ने निःसंदेह नारी को गौरवपूर्ण स्थान . दिया था जिसके गर्भ में स्वामी स्वयं पुत्र रूप में जन्म ग्रहण करें, वही “जाया” है। वेद-युग में पर्दा प्रथा का पूर्णतः अभाव था। कन्यायें निर्मुक्त होकर युवकों के साथ अध्ययन करती थी एवं काम-धन्ये भी करती थी। वे अध्यापनादि क्षेत्र भी अपनाती थी। स्त्रियाँ खुली आमसभाओं में भाग लेती थी। वेदयुगीन स्त्रियाँ जनतन्त्रीय _ सभाओं की शासन सम्बन्धी बहसों में भाग लेती थी, किन्तु उत्तर वैदिक काल में नारी की बाह्य क्षेत्रीय स्वतन्त्रता कुछ कम हो गई थी। वेदयुगीन नारियाँ, वैदिक वाड्मय का विधिवत्‌ अध्ययन करती थी एवं यज्ञों में भाग लेकर मंत्रोच्चारण भी करती थी। वैदिक समाज में धर्म के नाम पर स्त्रियों के प्रति दुराचार नहीं किया जाता था। विवाह संस्कार सम्पन्न होने के पश्चात कन्यायें अधिक सम्मान की पात्र ही... है जाती थी। प्रारम्भिक वेदयुग में पत्नी की यज्ञ में सोमगीतों का गान करती थी। पति... | . एवं पत्नी दोनों साथ-साथ पूजा करते थे। यज्ञ हेतु पत्नी पूरी तैयारी करती थी। वह... ग ही .... यज्ञ के लिए चावल बनाती थी, पशु को स्नान कराती थी, वेदी का निर्माण करती थी [ः बे .... तदुपरांत पति के दायीं ओर बैठकर पति के सहयोग से विधिवत यज्ञ सम्पन




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