ज्ञानावली | Gyanawali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
298
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साघु वन्दना । ्
कालिक सूत्रनो बोह भाखी तिहां ॥ १॥ स्वामी
. शीतल जिन साथ आनन्द ए, सती सुढ्सा नमूं
. चित आनन्द ए । एक सागर कोड तणो अंतरों
कह्यो, एकसो सागर ऊणो कर संग्रद्यो ॥ २॥ सहस
छावीस छयासठ लाख ऊपरे, काढिक सूत्र नो छेद
इण जंतंरे । श्री श्रयांस मुनि गोथ बधाइये, घारणी
साहुणी बढ़े चरण चित छाइये ।। ३ ॥ पूर्व भव गुरु
कहूं साध संभूत ए. विस नदी बले सुगुण संयुत्त
ए। अचल मुनिधुर नमूं पठम हलघरा ए; बंधन उप
पृष्ठ केराव सिरधरा ए ॥ ४। चौपन सागर बिच
थया केवली, बन्दिये सूत्रतो बोह भाख्यो वली । इम
बिछेश बिच सात जिण अन्तरे, जाणिये शान्ति जिन
घर लखे इण परे ॥ “५ ॥ खामी वासपुज्य जिन साथ
सी धमघर, साहुणी वे जिहां घरणि उपद्रव हर ।
सुगुरु सुभद्र सु बंधव बखाणिये, विज मुनि बंधव
दविपप्ट हरि जाणिये ॥ ६ ॥ तीस सागर विच अन्तरे
जे थया, केवली वंदिये भाव भगत सया। विमठ जिन
बन्दिये साध सिमन्धर बी, समणी धरणी धरा
आगम सांभठी ॥७॥ गुरु सुदरबन मुनि सागर दत्त
ए, भव हरि बंधव भद्र शिव पत्त ए। नव सागर बिच
अंतर केवली, जे 'थया ते सहू वंदियें वाठे वि ॥८॥।
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