बृहद्यवनजातकम | Brihadyvanajatakam
श्रेणी : ज्योतिष / Astrology, संगीत / Music
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं ज्वालाप्रसाद मिश्र - Pn. Jvalaprsad Mishr
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(८) बूृदहयवनजात कर भू ।
छयेश छठे स्थानमें हो तो उसके शद्ट हों, आयुवान् हो, पुत्र
और मामाकों सु हो, पशु और मातासे सुख हो! अनेक नाते युक्त-
मवुष्य कृपण होता हू ॥ ६ ॥।
प्रथमठशपतिमेतुजः छ्ियं सुवभनेर शुभशीलविठातितमू ।
सविगय वनितोपतुव च हि सरुठरुपपुर्त कुरुते सदा ॥ ७ ॥
लग्रेश सप्तम हो तो मवुष्य खी घनका सुख पावे, अच्छे शीर और
विछाससे युक्त, विनयवान्, सकझ रुपवान् करता है ॥ ७ ॥
. प्रथमभावपतिमूंतिगों मर्ति विद्धते छपणं घनवखकमू ।
विविषकथ्टयुत शुभदष्टिवी भवाति मानव हु४ छतवाद सुवीर # ८ ॥
जा ठप्ेश अशा हो तो सूत्यु हो वह मवुष्य कृपण और धन-
बैचक हो, तथा अनेक कट हों ओर अच्छे श्रहयोकी दृष्टि हो तो मान
बडाई युक्त बुद्धिाव् होता है ॥ ८ ॥
तढुपसतिठुते तप युवे सइजमित्रवशन्पतिदेशकद ।
सुखसुशीलगिरिक यशो निधि तति दूज्यतमों मु जो चू गा सू ॥९॥
ह जो छप्रेश नवम हो तो तपती; भाई मित्रति युक्त, प्रवासी, सुख
शीलका स्थान, यशस्री, राजोंपें पूज्य, मतुष्योंमें प्र ते डे होता है॥९॥
दशमघामगते तवुताय के जनरमातृजुवं चूपतेः समा ।
सकढभोगतुव शुभकरगां कविषर युहुदूजनकं वरमू ॥ १० ॥
जो छुपे दृशम बाएं हो तो माता ओर पिताका सुख हो राजाकी
समान हो, सम्पूर्ण जोगोंका उु हो तथा शुमकर्माका कतों ओर
गुरुपूजन करनेवाछा होहा है ? १० ॥!
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User Reviews
rakesh jain
at 2020-11-29 10:05:17