दीये से दीया जले | Deeye Se Deeya Jale

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Deeye Se Deeya Jale by गुरुदेव तुलसी - Gurudev Tulasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ सकल्प विश्वास की सुरक्षा का अणुग्रत पाक्षिक का एक स्तम्भ ह- “मेरा विश्वास ह । सन्‌ १६८४ स इस स्तम्भ के अन्तगत म अपन पिचार द रहा हू । राजनीतिक, सामाजिक, पारिवारिक, शक्षणिक आदि विभिन्‍न सन्दर्भो में मन सकारात्मक दृष्टि से सोचा आर ण्सा प्रिश्यास व्यक्त फिया, जा लाकजीवन का विश्यास क धागा मे आवद्ध कर सके । फिन्तु एफ दशक की यपिचारयाना का विश्लंपण करता हू तो पाता हू कि विश्यास का घरातल ठास नहीं ह। ऊपर-ऊपर स हर व्यफ्नि दूसरा को अपन विश्यास म लगना चाहता ह। पर भीतर-ही-भीतर सन्दह की नागफनी सिर उठाए खड़ी रहनी ह। जय व्यक्नि स्वय किसी का पिश्यास नहीं करता ता दूसरे उसका विश्यास कसे कर पाएग। अपिश्यास की पटरी पर जीयन की गाड़ी चल रही हि । कहा नहीं जा सकता, कव कहा दुधघटना घटित हा जाए! डॉक्टर रागी की चिफिन्सा करता ह। पर रोगी का यह पिश्यास नहीं होता फि उसकी चिकित्सा सही हा रही हे । क्याकि वह जानता ह कि उसक डॉक्टर का कइ लोगा के साथ अनुवध ह। दवा निमाता और दया-विक्रता क साथ उसका जनुवध ह। एक्सरे मशीन वाले के साथ अनुवध हे । व्लड, यूरिन आदि टेस्ट करने वाले के साथ अनुवध ह, आर भी कइ लोगा क साथ , अनुवध है । उसक हाथ से लिखी पर्ची दखकर सम्बन्धित व्यक्ति डॉक्टर के खाते म एक निश्चित राशि जमा कर देता हे। जहा आधिक चुनियाद पर चिकित्सा होती हे, वहा रोगी डॉक्टर क प्रति विश्यस्त केस रह सफता हें ? मेता चुनाव पे प्रत्याशी चनते रू उतत समय जनता से सीधा सम्पर्क करत है। उसके सुख-दुख को सुनते ह। उसे दु ख-दुविधा दूर करने का आश्यासन देते ह । चुनाव घांपणापत्रो में व्ड-वडे वाद करते ह। फिन्तु चुनाव सकल्प विश्वास की सुरक्षा का




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