जीवन संध्या | Jivan Sandhya

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Jivan Sandhya by आशापूर्णा देवी - Ashapoorna Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन-संध्या + १४ आवाज सुनने की आदत डालनी हो पड़ जयेगो । बोला, “जा क्यों नहीं सकगा ? कह्िए वया लाऊं ?”” हो “जो भी मिले । रसपुत्ला ! रसगुल्ला हो ले आना । रुपये दूँ ? ”” “जी, मभो मेरे पास हैं ।”” सुवल हेजी से सोढियाँ उतरने लगा । सहतता नोलाजन को तीखी झत्लाइट उसकी पीठ पर मुवके जेसो आकर लगी, ''इनको इट तरह से वीच रास्ते में बयों रख गया ।' इनको से उसका मतलब वह सुटकेस और बिस्तरबद से था । बया गूंँगा मकान बोलने लगा ? मुखरित हो उठा ? चचल हो उठा ? कुछ ही देर बाद सुचिस्ता के कमरे में नीलाजन ने प्रवेश किया । “यह बात हम लोगों को पहले से बता देने से वया नुकसान हो जाता माँ । यह तो तय था कि हम लोग मना नद्दी करते ।” बेठे के इस अप्रत्याशित अभमियोग से कया सुचिन्ता के 'डौंकने की दारी थी ? या भपने को आहत महसूस करना चाहिए था ? इसी वात के लिए बया वे सारे समय खुद को वैयार नहीं कर रही थी ? कया उन्होंने नोता के सामने सबसे पहले खुद ही से यह भसहाय सवाल नहीं पूछा था--“मेरे बेटे बया सौचेंगे ?”” वे थोली, “तुम गलत समझ रहे हो नोलॉजन, उनके आने का पता तो मुझे भी नहीं था ।” “कया यह एक विचित्र किस्म की अविश्वसनीय घटना नहीं लगती ? ” सुचिन्ता ने सिर उठाकर देखा, उसका सौम्य शिप्ट लड़का सहसा न जाने कैसा अशिप्ट लगने लगा था । इसके बावजूद उन्दोंने स्वयं को संयत रखा, बोली, “दुनिया में न जाने कितनी अविश्वसनीय घटनाएँ घटती रहती हैं, इसको भी उसी तरह की एक धटना समझ लो ।”” “उनके तो दिमाग में भी कुछ गढ़वडी लगती है ।”” हाँ, मानसिक रोग है । दवा कराने के लिए कलकत्ता आये हैं । लुम्बिनी में दिखलाना है 1 लेकिन यह मेरी समझ में विल्कुल नहीं था. रहा है कि इस काम के लिए इस मकान को हो दरों चुना गया ?”” “यह यों तो मेरी भी समझ में नहीं था रहा है ।”” गक्या वाकई तुम्हारों समस में नहीं आ रहा है?” यह कहकर सुचिन्ता को स्तब्ध करते हुए नीलीजन कमरे से वाहर निकल गया । इसके काफी देर बाद जब नीता अपने पिता को लेकर बाढर चली गयी, तब सुचिन्ता अपने सबसे बड़े लड़के के पास जाकर हाजिर हुईं | बोली, “मुझे




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