सहकारिता एवं सामुदायिक विकास | Sahakarita Avam Samudayik Vikas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
326
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्० सहकारिता एव सामुदायिक विकास
कर चलें त्तभी विकास सम्भव है 1? साधारणत सहकारी बान्दोचन अशिक्षित तथा
निधन जनता के लिये है अत सहकारिता के सिद्धान्तो की उन्हे जानकारी देना
नितोतत वाछनीय है ।
११) सहकारो समितियों में सहकारिता (0०0641100 50 (00फल180ए₹:) 2
अन्तर्राष्ट्रीय सहकारी सघ के १९६६ के कसीदान ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादत
किया ।* इस सिद्धान्त के अनुसार सभी सहकारी समितिया (स्थानीय, राज्यस्तरोय तथा
अस्तराष्ट्रीय स्तर) को एक दुसरे को सह्योग देना चाहिये । यह सिद्धान्त सगठनात्मक
समस्या से मम्बन्धितें है । उदाहरण के लिये सभी राज्य सहकारी बैक एक राष्ट्रीय
सहकारी बैंक की स्थापना कर सकते है । इसी प्रकार अनेक देशों की राष्ट्रीय सहकारी
बैंक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की सहकारी बैक स्यापित कर सकते है । अत आपसी सहयोग
से सहकारिता का क्षेत्र अधिक व्यापक हो जाता है । आपसी सहयोग कई प्रकार से
हो सकता है जँसे सहकारी समितियों में आपस में वितियोजत, व्यवसाय, सहकारी
शिक्षा तथा सयुक्त सहकारी इकाइयों को स्थापना आदि । हावर्ड ए० कडेन (प४9910
4, 0००0९) ने कहा है कि विभिन्न देशो के सहकारिता आन्दोलनो मे इस सिद्धान्त
का अभाव पाया जाता है ।
(१२) प्रूँजी की अपेक्षा सातव को अधिक महत्व (एए007081006 (0 106 पता 30
एलाएट्ट व प2ा (02 एघ081)
सहकारिता में पूंजो की उपेक्षा मानव को अधिक महत्व दिया जाता है ।
अन्य पूंजोवादी संगठनों मे (जंसे सयुवत स्कन्घ प्रमण्डल) मे पूंजी के भाव।र पर मत
देने का अधिकार होता है किन्तु सहकारिता में पूंजी को महत्व न देकर 'भानव' को
अधिक महत्वपूण माना जाता है । “एक व्यक्ति एक मत' के सिद्धान्त के आधार पर
यह कहा जा सकता है कि सहकारिता संगठन में पूंजी की अपेक्षा “व्यक्ति का
अधिक महत्व है ।
सहकारिता की उत्पत्ति
(0ताइड७ ५ (००क्लव०00)
आपसी सहयोग कोई नयी विचारधारा नही है । प्राचीन काल से हो व्यापार
मे पारस्परिक सहयोग से कार्य चलता आ रहा है । प्राचीन काल मे ग्रामीण जीवंत
इसी विचारधारा पर आधारित था। मुख्यत कृपि क्षत्र में इसका बहुत
महत्व था 1. क्न्वु. आधुनिक अ्थ में सहकारिता की. उत्पत्ति अधिक
प्राचीन नहीं है। अठारहवी शताब्दी के मध्य इग्लण्ड में औद्योगिक मान्ति
का प्रारभ हुआ । इस क्रान्तिसे वहाँ की जनता के सामाजिक तथा आधिक
जीवन में महर्वपूण परिवर्तन हुए ॥ फलत वहाँ पूंजोपति तथा श्रमिक के दो वर्गों
का जन्म हुआ । औद्योगिक क्रान्ति ने निधन वग को अधिक बुरी तरह प्रभावित
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