जिनवाणी संग्रह | Jinvani Sangrah

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
919 by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
८] थघु ब्याज से भ. मन्ये वर इरिइरादय एवं इटा दृष्टेषु येषु हृदय त्वयि तोषमेति। कि वीश्ितेन मवता झुवि येन नान्य! कश्रिन्मनों इरति नाथ मत्रांतिरेजपि ॥ २१ ॥। भावु' जड़े ढरिराषििने दीड। ते ! दीऐ छते हुदय खाप दिपे 8 छे; देवा घड़ी ब्तथेतनां प्रमुना अडाश, ब्तन्भान्तरे न छूरशे भन डै।घ. नाथ ! ख्रीणां शतानि शतशों जनयन्ति पुत्रान्‌ नान्या सुते त्दुपमं जननी प्रस्ता । सवा दिश्लो दधति भानि सदखररिपं ग्राच्येव दिरजनयति स्फुरदशुजालमू ॥ २२ ॥ खी से 53 असवती, दी सुन जाओ, न सन्य साप सगे है। प्रसवे ग्तनेता ! तारा नमनेह घरती/ दिशा नपीय, तेन्टे सडुरीत रविने अस्त 'ूने' त्वामामनंति सुनयः परमें पुर्मांप- मादित्यवणममल तमसः पुःस्तात्‌ । त्वामेत्र सम्पणुपलभ्य जयन्ति मृत्यु नान्य॑ शिव: शिवपद्स्य मुर्नीद्रपथा: ॥ २३ ॥ भाने परपुइष सच औुनि तने, ने चार सभीपे रवि शुद्ध ब्वेसु ! चाभी तने सुरीत चत्यु-छते अुनींद्र ! छे ना, णीनदे ुशण मेक तथुधगत भाथ, रेप, रे3.




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now