जिनवाणी संग्रह | Jinvani Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
284
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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थघु ब्याज से भ.
मन्ये वर इरिइरादय एवं इटा
दृष्टेषु येषु हृदय त्वयि तोषमेति।
कि वीश्ितेन मवता झुवि येन नान्य!
कश्रिन्मनों इरति नाथ मत्रांतिरेजपि ॥ २१ ॥।
भावु' जड़े ढरिराषििने दीड। ते !
दीऐ छते हुदय खाप दिपे 8 छे;
देवा घड़ी ब्तथेतनां प्रमुना अडाश,
ब्तन्भान्तरे न छूरशे भन डै।घ. नाथ !
ख्रीणां शतानि शतशों जनयन्ति पुत्रान्
नान्या सुते त्दुपमं जननी प्रस्ता ।
सवा दिश्लो दधति भानि सदखररिपं
ग्राच्येव दिरजनयति स्फुरदशुजालमू ॥ २२ ॥
खी से 53 असवती, दी सुन जाओ,
न सन्य साप सगे है। प्रसवे ग्तनेता !
तारा नमनेह घरती/ दिशा नपीय,
तेन्टे सडुरीत रविने अस्त 'ूने'
त्वामामनंति सुनयः परमें पुर्मांप-
मादित्यवणममल तमसः पुःस्तात् ।
त्वामेत्र सम्पणुपलभ्य जयन्ति मृत्यु
नान्य॑ शिव: शिवपद्स्य मुर्नीद्रपथा: ॥ २३ ॥
भाने परपुइष सच औुनि तने,
ने चार सभीपे रवि शुद्ध ब्वेसु !
चाभी तने सुरीत चत्यु-छते अुनींद्र !
छे ना, णीनदे ुशण मेक तथुधगत भाथ,
रेप,
रे3.
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