पुराना लखनऊ | Purana Lakhanuu

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Puraanaa Lakhanuu by अब्दुल हलीम 'शरर' - Abdul Haleem 'Sharar'नूर नबी अब्बासी - Noor Nabi Abbasi

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नूर नबी अब्बासी - Noor Nabi Abbasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस बात के मानने में दायद किसी को श्रापत्ति न होगी कि हिंदुस्तान में पूर्वी सम्यता भौर संस्कृति का जो श्राखिरी नमूना नज़र श्राया वह झ्रवघ का पुराना दरबार था । पिछले जमाने की यादगार के तौर पर श्र भी कई दरबार मौजूद हैं मगर जिस दरबार के साथ पुरानी तहज़ोब श्रौर संस्कृति खत्म हो गयी वह यही दरबार था. जो बहुत ही आखिर में कायम हुध्रा पौर ध्रजीब-ध्रजीब तरक्क़ियां दिखा कर बहुत ही जल्दी नष्ट हो गया । लिहाज़ा हम इस दरबार का संक्षेप में वर्णन करना चाहते हैं शरीर उसको विज्षेषताएं बताना चाहते हैं । यह मान लेने में भी दायद किसी को श्रापत्ति न होगी कि जिस प्रदेदा में पिछला दरबार क़ायम हुमप्रा उसका महत्व हिंदुस्तान के दूसरे सभी प्रांतों से बढ़कर है । पुराने चंद्रवंबी परिवार विशेषकर राजा रामचंद्र जी के महान शभ्रौर बेमिसाल कारनामे इतने अधिक हैं कि इतिहास उन्हें अपने भ्रंदर समोने में ध्रसमर्थ है श्रोर यही कारण है कि उन्होंने इतिहास की सीमाएं लांघ कर घार्मिक पवित्रता का रूप घारण कर लिया है । श्राज हिंदुस्तान का शायद हो कोई ऐसा श्रभागा गांव होगा जहां उनकी याद हर साल रामलीला के घामिक नाटक के माध्यम से ताज़ा न कर ली जाती हो । लेकिन भ्रवघ के इस सबसे प्राचीन दरबार का वर्णन श्रीर अ्रयोध्या का उस युग का वेमव वाल्मीकि ने ऐसी चमत्कृत झोली में किया कि वह श्रास्थावान व्यक्ति के हृदय पर अंकित हो गया । लिहाजा हम उसे यहां दोहराना नहीं चाहते । जिन लोगों ने अझ्रयोध्या के उस वे भवशाली युग का चित्रण वाल्मीकि की कलाकर्ति में देखा है वे उसी शुभ स्थान पर भ्राज दिल गुदाज़ में फंज़ाबाद की तस्वीर देखें । हम घटनाक्रम को उस समय से शुरू करते हैं जब उस श्राखिरी दरबार को बुनियाद पड़ी जिसे नष्ट हुए कुछ ऊपर पचास साल से ज्यादा जमाना नहीं हुमा । लेखक द्वारा संपादित पत्रिका जिसमें अस्तुत पुस्तक क़िस्तवार प्रकाशित हुई थी । 1887-1935 ई० ।




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