मराठाकालीन गुजरात | Marathakalin Gujrat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.67 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इस विजय के थोड़े ही दिनों वाद खंडेराव झ्ौर उसका नव नियुक्त सहायक दोनों ही मर गए । त्रूयम्बकराव दाभाड़े को उसके पिंता के स्थान पर नियुक्त करके सेनापति की पोशाक प्रदान की गई श्रौर जनकोजी गायकवाड़ के पुत्र- पीलाजी को उसके काका दामाजी का श्रधिकार प्राप्त हुम्ना । कुछ ही वर्षों बाद ऊदाजी पंवार नामक एक दूसरा प्रगतिशील श्रौर सबल मरहठा सरदार श्रपने घुड़सवारों सहित गुजरात श्रौर मालवा में श्राया । उसने गुजरात में लूणावाड़ा तक लूटपाट की श्रौर मालवा में भोज के वंश की गद्दी पर श्रधिकार करके उसी का नाम घारण करते हुए राज्य-संस्थापन किया । इसी समय निजामउल-मुल्क को हटाकर शुजाश्रत खां को. गुजरात के सुवेदार सरवुलन्द खां का सहायक नियुक्त किया गया था । निजामउल मुल्क के चाचा हमीद खाँ ने उसका सामना किया श्रौर मरहठा नायक कन्ताजी को भी चौथ देने का वचन देकर श्रपने पक्ष में कर लिया । इन दोनों सरदारों ने मिलकर गुजरात की राजधानी से थोड़ी दूर पर ही शुजाश्रत खां पर श्राक्रमण # वबड़ोदा के सुप्रसिद्ध स्वर्गीय महाराजा इनको मल्हार राव के पदश्रष्ट होने के वाद खंडेराव महाराज की रानी जमनावाई ने गोद लिया था पहले इनका नाम गोपालराव था गद्दी पर वैठने के वाद सयाजीराव नाम पड़ा । गायकवाड़ राज्य का विस्तार लगभग 8600 वर्ग सील का था 2931 ग्राम थे श्रौर आवादी लगभग 22 लाख की थी । यहाँ के महाराजा की सलामी 21 तोपों से होती थी । 4. सन् 1722 ई० में जुमलातउल-मुल्क निजामउल-मुल्क गुजरात का 51 वां सूवेदार नियुक्त था और उसने भ्रपने चाचा हमीद खाँ को सहायक बनाया तथा मुनीमखां को सूरत का शासक नियुक्त किया । शाही दरवार में किसी अपमानजनक व्यवहार से अ्रसंतुप्ट होकर वह लौट गया श्रौर वहाँ उसने. श्रपने को स्वतन्त्र घोषित कर दिया । वादशाह मुहम्मद शाह ने सरवुलन्द खाँ को गुजरात का सूवेदार बनाया श्रौर शुजाश्रत खाँ को उसका सहायक नियुक्त किया । हमीद खाँ अपने पद को छोड़ना नहीं चाहता था श्रतः दोनों पक्षों में लड़ाई शुरू हो गई। 5. कन्ताजी कदम भाण्ड राजा साहू का कार्यकर्ता था जिसको मालवा भेजा गया था । वह उत्तर-पूव॑ की श्रोर से गुजरात में प्रविष्ट हुम्ना श्रौर दोहद के. श्रास पास इस प्रान्त को लूटता रहा । सन् 1723 ई० में इसी कन्ताजी ने इस प्रदेश पर मरहठा कर चौथ सरदेशमुखी श्रौर स्वराज्य लायू किये थे । चौय-न्चतु- थाश । सरदेशमुखी चौथ पर दशांश । स्वराज्य न शिवाजी- की मृत्यु के समय जो प्रदेश उनके श्रघिकार में था वहा लगने वाला कर स्वराज्य कहलाता था ।
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