पाण्डव - वनवास | Pandaw - Vanawas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला परिच्छेद । ११
लजलथ्नभथलनप्पपि . पलटनय अल उनधलथाथणथ जलन
हो जान सकते हैं। जएसे एक विषयमें बहुत देर तक चित्त
निवेशित करनेको शक्ति दोतो है; प्रतिक्षिण उत्साइ-शत्ति उद्दो
पित होती रहतो है; जिगीषातत्ति बलवती हो जाती है;
कौतूदलकों क्रमश: हद होती है; पासा फ्रेंकनेके पहले हर्ष,
दुग्ख, कोप, लोभ प्रति नाना भावों का श्राविर्भाव एक साध
होता है; गोटोके चलानेस. विवेक-शह्ति बढ़ती है; दूसरे कौ
चतुरता का... सहसा ज्ञान होता है; खबर प्रतारित होना
न पढ़े, इसके लिये सतक रहना पढ़ता है; खाजुष्टित कर्मी
उपदेशिनो उत्पन्मति उपस्थित होती है; क्रौड़ा-नैपुर्थ प्रका-
शित होता है ; अन्त:करण प्रसन्नताके सारे नाचने लगता, है;
अपना दाव पढ़ने पर जेसा आनन्द होता है, वैसा ानन्द एक
साम्त्रान््य पाने पर भी नहीं होता। है अन्ष-विशारद ! इस
सभामें बदुतिरे श्रच-दशक सदह्दात्माओींका समागम इआआ है, सभी
कौतृददलाक्ान्त डोकर तुम्हारे आनेके फलकों प्रतोक्षा कर
रहे हैं, अव विलस्व करना उचित नद्दों है; भ्राश्नो, दयूत-क्रौड़ा
आरख् को जाय !”
राजा युधिष्टिरने शकुनि को प्रसिद्द कपटो खिलाड़ो जान-
कर, उसको बातींमें . उपेक्षा दिखाते इए. कहा, राजन!
यद्यपि यत श्रामोदकर है, किन्तु कूट क्रोड़ा . आमोद
का कारण दोकर कलइका कारण दो जाते है.। , कपट की
क्रौड़ा चात्रधरस्मनुयायिनो या राजनोति-अज्ुगामिनो नहीं
है; चाहे जहाँ कोई स्थान क्यों न हो,पर कापव्य-व्यवहार प्रशंस *
नम
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