शरणागति रहस्य | Sharanagati Rahasya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
355
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चिमीषणका दारण आाना न
महर्षि कहते हैं 'आजगाम” ।
पआजगाम” के साथ कहा है. 'मुहूर्तेन” । क्या विभीषण
उ्योतिषियोंपि मुहूर्त झोधन करवाकर चले थे ९ नहीं नहीं । इसका
अर्थ है, मुहर्तमात्रमे; जल्दीसे । इसके द्वारा भगवदूभक्त विभीषण-
की मानसिक अवस्थाका सूचन किया है । बह चिरकालसे भगवान्
श्रीरामचन्द्रके दर्शनके छिये उत्सुक हो रहे थे । उनको बड़ी
उतावठी लग रही थी कि कब लक्कासे छुटकारा पाऊँ और भगवान्
श्रीरामचन्द्रजीका दर्शन कहूँ । वह जब दुबारा रावणकों समझाने
उसके महठम गये थे तो भीतर-ददी-भीतर यह भी घुकड़-पुकइ लग
रही थी कि अर यदि समझानेमे लक्कापति रास्तेपर आ गये तो
श्रीरामचन्द्र चरण-दरशन नहीं हो सकेगा । खैर, ज्येष्ठ श्राताका
तो कन्याण होगा । मैं मनके द्वारा तो चरणोंकी शरणागति
स्वीकार कर ही चुका हूँ । फिर और कोई उचित अवसर देखकर
झरणमें चला जाऊँगा । किन्तु जब रावणने उचित सलाहकों
ठुकरा दिया और विभीषणका घोर अपमान किया, उस समय
उन्हें ला छोइना निश्चित करना पढ़ा । अब उन्हें भगवच्छरणमें
जानेके बीचका विलम्ब कैसे सहन होता *
जैसे ही प्रात:काल हुआ कि वछड़ा देखता रहता है कि
क्र दोहनेका समय आवे और मैं माताके पास पढुँचूँ और स्तन-
पान कहूँ । जैसे ही गौको चरनेके लिये छोड़नेका समय आया
और दुहदनेवाला दुद्दाली ( दोहनी ) लेकर पास आने ठगा
कि. बच्छा अपने खूँटेसे बैँँधा ही खुलनेके लिये तड़फड़ाने
ठगता है । रस्सीको खूँटेसे खोलते समय तो वह यहाँतक
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