भारतीय अर्थशास्त्र भाग - 2 | Bharatiy Arth Shastra Bhag - 2
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
280
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१०
ऐसी व्यवस्था की जाय जिससे कि इस कार्यक्रम से जितने मजदूर बेतार हों, उ
कोई अन्य रोजगार मिल जाये ।
हमे भपने देश में हो विभिन्न प्रकार की सूती वस्त्र उद्योग में काम श्राने वार
मशोनें बनानी चाहियें । इस दिशा में श्रव प्रगति हो रही है. 1
(२) विदेशी प्रतियोगिता-- भारत के सूती वस्त्र मिल-उद्योग को लाभदा८
स्थिति मे बनाये रखने के लिये श्रावश्यक है कि इसके द्वारा बनाया गया कपड़ा पर्या
मात्रा मे विदेशों को निर्यात किया जाय । दुसरे विदव युद्धकाल में झर इसके पश्चात्
कुछ वर्षो में उद्योग को मध्य पूर्व व अफ्रीका के देशो व श्रन्य समीपर्व्ती दे!
के सुरक्षित बाज़ार मिल गये थे, भ्रौर यहा से इन देशों को बडी मात्रा मे कप
निर्वात किया जाता था । १४४०-५१ में लगभग ११७ करोड रुपये के मूत्य
१,२७ करोड गज कपड़ा निर्यात किया गया था । कपड़े के निर्पात का यह उच्च
शिखर था । इसके परचात से कपड़े का निर्यात बहुत कम रहा है । यह इसलिए, वयो!
'एक तो जिन देशों को भारत से कपड़ा निर्यात किया जाता है, वहा भ्रपने वस्त्र-उ्॑
को विकास हो रहा है । दूसरे, भ्रन्य प्रतियोगी वस्त्र-उत्पादव देशों, विशेषतः जापान, च॑
की प्रतिस्पर्धा बढती जा रही है । इस प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए भौर झा
निर्पात-बाजारों को बनाये रखने के लिए श्रावश्यक है कि भारतीय उद्योग श्रपनी का'
._ क्षमता को बढाए, ध्ौर ग्रधिक भच्छा तथा सस्ता कफडा बनाए | इसके लिए घर
मशीनों का प्रतिस्थापन तथा भ्रभिनवीकरण श्र श्रमिकों को कार्यक्षमता में बृूठ
श्रत्यावश्यक है । साथ ही, विदेशों मे पर्याप्त विज्ञापन एवं प्रचार तथा विदेशी बाजा'
का श्रध्ययन भी प्रावश्यक है। सरवार द्वारा १६५४ मे स्थापित “सूती वस्त्र निर्या
प्रोस्साइन परिषद इस दिशा मे श्रच्छा कार्य वर रही है। भारत सरकार को श्रपर
निर्वात-शुल्क नीति भी ऐसी रखनी चाहिए जिससे भारतीय कपडे की निर्यातो १
प्रतियोगी शविति को बड़ा घक्का न लगे ।
(३) कच्चा माल--देश के विभाजन के परचात से भारत में कपास की कर
हो गई है । भ्रपनी मिलों को पूरा वर चालू रखने के लिए हमे महंगे भाव पर विदेश
. से कपास की झ्रायात करनी पड़ती है। इससे कपडे की उत्पादन लागत भी ऊ'च
पड़ती है । इसके लिए म्ावश्यक है कि देश में कपास का, विशेषत: लम्वे रेस वाह
कपास का, उत्पादन बढ़ाया जाय । पिछने कुछ वर्षों से सरकार इस शोर प्रयर्नशी'
है, भ्रौर उसे सफलता भी मिली है । परन्तु हम प्रमी तक भी इस दिशा में भात्म
निर्भर नहीं हुए हैं 1
(४) हाय-करघा उद्योग एवं मिल उद्योग मे सामंजर्य-- कपडे की बुनाई 1
क्षेत्र मे हाध-करघों श्रौर मिलों में पुरानी प्रतिस्पर्धा चली झा रही है । मुख्यतः रोज
गार की मात्रा के दृष्टिकोण से, सरकार हाथ-करघों के विकास श्रौर उन्नति व
प्रोत्साहित वर रही है । इसके लिये उसने कुछ विशिष्ट प्रकार के कपड़ों का उत्पाद
User Reviews
No Reviews | Add Yours...