मुगल साम्राज्य की जीवन - सन्ध्या | Mugal Samrajy Ki Jivan Sandhya

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Mugal Samrajy Ki Jivan Sandhya by राजेश्वर प्रसाद नारायण सिंह - Rajeshwar Prasad Narayan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सरसरे हादसा बर्खस्त पये ख्वारिए मा, दाद बरखाद. सरोबग जहानदारीए मा । (दुर्भाग्य का. तूफान हमें मिटाने को उठा, इसने हमारी बादशाहो हुकूमत को मिटा दिया ।) -प्राफताब (शाह श्रालम) न किसी की श्राँंख का नूर हूँ । नकिसी के दिल का करार हूँ । जो किसी के काम न श्रा सके, मैं वह एक. मुश्तेग्बार हूं। मै वह कुद्ता हूं कि मेरी लाश पर एं. दोस्त, एक जमाना दीद-ए हसरत से तकता जायगा ! -जफर




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