योग - मनोविज्ञान | Yog - Manovigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
582
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्राक्कृयन श्
शिव द्वारा मदन दहन या. बुद्ध द्वारा मार घषंण एक ही प्रतीक के दो
रूप हैं। काम वासना झ्धोगामिनी होती है । वह मन को अझधिकाधिक भौतिक
मल से संयुक्त करती है । इसके विपरीत योग की साधना ऊ्वंमुखी होकर
जीवन की समस्त प्रवृत्ति को ही ऊँचा उठाती है । इस प्रकार थे भोग श्रोर
योग के दो मार्ग हैं। इन्हीं को प्राचीन भाषा में पितुयान श्रौर देवयान कहा
गया है। योग के द्वारा जो कल्याण साधन संभव है उसके लिये जिज्ञासु को
इसका श्रवलम्बन लेना उचित है । इस विद्या की व्याख्या के लिये इस ग्रंथ के
लेखक ने जो प्रयत्र किया है वह सवधा झ्रभिनन्दन के योग्य है ।
हस्ता० वासु्दव दारण
काली विश्वविद्यालय
११-११-६४
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