माता और पुत्र | Mata Aur Putra

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Mata Aur Putra by चण्डीचरण बनरजी - Chandicharan Banaraji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम परिच्छेद ) ऊेकेरटि “जननी जन्मभूमिश्व स्वगांदपि गरीयसी” माता और जन्मभूमि स्वगसे भी बढ़कर है । परमेश्वरने माता-पिंताकों बच्चोंके लिये अपना प्रतिनिधि बनाकर, संसारमें भेजा है। माता-पिता ही बच्चेका ईश्वर-समान छाठन-पाठन करते हैं । उनके शुद्धाचारी होनेसे ही, संतान शुद्धाचारिणी होती है और उनके दुरावारी होमेपर सन्तान कदापि सदाचारिणी नहीं हो सकती । सरला चुपचाप स्वामीके वचनोंको सुनती रही, अब इनके वचन समाप्त होते ही, वह ठम्बी और ठण्ढी सांस भरकर कहने जगी--“आजतक मेंने कमी भी बाठकके विषयमें विचार नहीं किया था । मेरी समकमें अब यह बात आई है कि सन्तानका होना कोई सोभाग्यकी बात नहीं । यदि सन्तान बड़ी होकर यथाथं मजुष्य बननेके स्थान पशुओंके समान जीवन निर्वाह करे तो उससे न होना ही अच्छा है। मैं तो अब चकित होकर सोचती हैं कि किस प्रकार में अपने पुत्रको यथार्थ मजुष्य बना सकू गी।”” खुबोध--अब रात्रि अधिक चली गई, आज यहींपर इस विषयकों समाप्त कर दे । हम फिर और किसी समय इस बि- पयपर बातचीत करे गे ।' सरला--“अन्य समय” से आपका क्या आशय है? क्या कहीं दो चार महीनोंके अनन्तर तो आपका प्रयोजन नहीं ? खुबोध--तो क्या तुम यह चाहती हों कि दफ्तरके कामसे थृके हुए आकर ही इस अधूरी शिक्षाके विषयमें १० बजे राश्रितक समय व्यतीत किया करू ? ० दा हि ११




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