माता और पुत्र | Mata Aur Putra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
80 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about चण्डीचरण बनरजी - Chandicharan Banaraji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम परिच्छेद )
ऊेकेरटि
“जननी जन्मभूमिश्व स्वगांदपि गरीयसी” माता और जन्मभूमि
स्वगसे भी बढ़कर है । परमेश्वरने माता-पिंताकों बच्चोंके लिये
अपना प्रतिनिधि बनाकर, संसारमें भेजा है। माता-पिता ही
बच्चेका ईश्वर-समान छाठन-पाठन करते हैं । उनके शुद्धाचारी
होनेसे ही, संतान शुद्धाचारिणी होती है और उनके दुरावारी
होमेपर सन्तान कदापि सदाचारिणी नहीं हो सकती ।
सरला चुपचाप स्वामीके वचनोंको सुनती रही, अब इनके
वचन समाप्त होते ही, वह ठम्बी और ठण्ढी सांस भरकर कहने
जगी--“आजतक मेंने कमी भी बाठकके विषयमें विचार नहीं
किया था । मेरी समकमें अब यह बात आई है कि सन्तानका
होना कोई सोभाग्यकी बात नहीं । यदि सन्तान बड़ी होकर
यथाथं मजुष्य बननेके स्थान पशुओंके समान जीवन निर्वाह करे
तो उससे न होना ही अच्छा है। मैं तो अब चकित होकर सोचती
हैं कि किस प्रकार में अपने पुत्रको यथार्थ मजुष्य बना सकू गी।””
खुबोध--अब रात्रि अधिक चली गई, आज यहींपर इस
विषयकों समाप्त कर दे । हम फिर और किसी समय इस बि-
पयपर बातचीत करे गे ।'
सरला--“अन्य समय” से आपका क्या आशय है? क्या
कहीं दो चार महीनोंके अनन्तर तो आपका प्रयोजन नहीं ?
खुबोध--तो क्या तुम यह चाहती हों कि दफ्तरके कामसे
थृके हुए आकर ही इस अधूरी शिक्षाके विषयमें १० बजे राश्रितक
समय व्यतीत किया करू ? ० दा
हि ११
User Reviews
No Reviews | Add Yours...