चार दानकथा | Chaar Dankatha

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Chaar Dankatha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जेन-साहित्य-मन्दिर, सागर । (१७) दानवृतान्त ! इन कन्या प्रति चथौ तुरन्त ॥४९॥ तबे चूघभसेना सुन येह । पहुँची नृपपे हर्षितदेह । शीघ्र छुडाओ पृथ्वीचन्द्‌। तब तिन पायो बहु आनन्द ॥४४॥ दोहा 1 अब इस एथ्वीचन्द ने, याको पट लिखवोय लिस चरनन में सिर घरत, अपनों भाव दिखाय ।४दे॥ था पद्धड़ी ।_.. पीछे वो पट लेकर रिसाल ! इनकौ दिखलायो नायभाल ॥ बृूषसेना तें इम वच उचार । हे देवी तुम मम मान सार ॥ ४७ ॥ तुमरे पसाद मम जन्म येद । अब सुफ्ल भयो है विन संदेह ॥ इम खुन चपतिय संतोष पाये । राजातें बहु सनसानयाय ॥ ४८ ॥ याकों आज्ञा दिलवाय दीन । घनपिंगल पे जावौ प्रवीन । यह सुनके प्रथ्वीचंद राय । पहुंचो निज नगरी माँहिं जाय ॥ ४९ ॥ अब खुनी मेघ पिंगल नरेश । आये काशीपति मम सुदेश.॥ वह जानत है सम सब जेद्‌ । ऐसे निश्चय करि धारि खेद ॥ ५० ॥ नप उदसेन के पास आय । हूवो चाकर निज सीस नाथ जे हैं जन जग में पुन्यवान । तिन अरी होत भित्रन समान ॥ ४१ ॥ दोहा 1 इस अन्तर इक 'दिनदिणें, उद्सेन नर राय । यह विधि परतिज्ञा करी, बहुविधि सन हर्षाय ॥ ५२ ॥




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