शिशु - पालन | Shishu-palan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्च्के अध्याय १ ष$ धघाठ-शिक्षा के ज्ञान से वचित रहने का दडुप्परिणाम चालके की अधिक सृत्यु-सस्या ही नही है, वरन्‌ इसके कारण नेक माताएँ भी स्वगं को सिधार जाती है । इंगलैंड और वेर्स मे सनू १९१७ इ० में एक सदसख्र जापों से ३८९ माताओं की जाने गई थी जब कि १९१४ से देहली में १९१६ । धाठृ-शिना के अभाव के कारण केवल माताओं और शियुझओं वी जाने ही नहीं जाती हैं, परन्तु इसका छुपरिणाम यह भी होता है कि अनेक वालक और माताश्यों का स्वास्थ्य जन्स भर के लिए नर हो जाता हैं और उन्हे अनेक रोग लग जाते हैं। हमारे देश में ८८,2०५ पागल, १,८९,८४४ गूंगे, वहरे, * इ.७९,६६७ छन्धे, १,०२,५१३ काढी ( > ८, ७,५३७ हैं। इसी थधाव-शिक्षा के न होने से हमारे देशवासिया की आयु ओसतन कवल २३ ही वर्ष की हैं जब कि पश्चिमी देशों से ५-५० वे की है । वाल-मृत्यु-सम्वन्धी कुछ विशेष वाते' निरक्षरता--ेंगलैंड के जन्म-गत्यु के श्रड़ो का देखने से लात होता है किं जिन नगरो में खियाँ कंस पढ़ी हुई है वहीं वाल मृत्यु झधिक हेतती है। भारतवप में स्त्री-शिक्ा की जैसी ढुढंशा है उसके विपय में विशेष कथन की 'आावश्यकता नहीं । यह स्पष्ट है कि स्त्री-शिन्ना का भाव भी चाल-मृत्यु की अधिकता का एक कारण है ।




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