दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि | Digambaratv Aur Digambar Muni

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Digambaratv Aur Digambar Muni  by कामताप्रसाद जैन - Kamtaprasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रामायण में दिगमबर मुनियों की चर्चा है--सर्ग 14 के 22वें श्लौक मैं राजा दशरथ जैन झमणों को आडारे देते बताये गये है भूषण टीका में श्रमग का अर्थ स्पष्ट दिगम्बर मुंनियों को उल्लेख सिलेता है । हिन्दु घर्म के प्रसिद्ध पुराण श्रीमद्रभागवत और विष्णु पुराण में प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव का ही दिगम्बर मुनि के रुप में उल्लेख मिलता है। इसी तरह वायुपुराण एवं स्कंघ पुराण में भी दिगम्बर जैन मुनियों का अस्तिन्व दर्शाबा गया है। बौद्धशास्त्रों में भी ऐसे उल्लेख मिलते हैं जो भगवान महादीर से पहले दिगम्बर मुनियों को होना सिद्ध करते हैं । ईसाई धर्म में भी दिगम्बरत्व को स्वीकार करते हुए कहां गया रै कि आदम और डव्वा नंगे रहते हुए कमी नहीं लजये और न वे कार के चंगुल में फंसकर अपने सदाचार से हाथ घो बैठे ! परनु जब <न्नोंने यापपण्य का वर्जित (निषिद्ध > फल खा लिया तो वे अपनी प्राकृत द्श खो बैठे और संसार के साधारण प्राणी हो गये । इसप्रकार डम देखते हैं कि इतिहास एवं इतिहासातीत श्वमण वें वेष्णव साहित्य के आलोक में उपर्युक्त तथ्यों को उजागर्करने वाली ”दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि” नामक प्रस्तुत पुस्तक में अपने नम के अनुरुप डी दिषयवस्तु का प्रतिपादन किया गया है । दिद्वाद लेखक ने मुख्यत इतिहास (ईसा पूर्व आठवी सदी » और इतिहासातीत (वेदों पुराणों में उन्निखित मगवान ऋषभदेव का काल-एक अज्ञात अतीत > के आलोके में, दिगम्बरत्व और दिगम्बरमुनि का अस्तित्व और औचित्य सिद्ध किया है। लेखक ने अनादिकाल से चली आ रही दिगम्बरत्व की पुन'स्थापना के लिए उसकी उपयोगिता, एवं अनिवार्य आवश्यकता की सिद्धि में न केवर' श्रमण संस्कृति को आधार बनाया, बल्कि वैष्णव, शैव, इस्लाभ ईसाई, यहूदी आदि सभी भारतीय एव भारतेतर धर्म, दर्शनों एवं दार्शनिकों के चितंन के आधार पर दिगम्बरत्व की अनिदार्य आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला है | और यत्रेतत्रे उल्लिखित प्रमाणों के आधार पर आत्मा की साधना एव मुक्ति की प्राप्ति में दिगम्बरत्व को ही परम उत्कृष्ट साधन सिद्ध किया है । यहाँ तक कहा गया है कि दिगम्बर ग्रुनि शुए निना मोक्ष की साधना, एवं केवल्यप्राप्ति संभव ही नहीं हैं ।




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