प्रायश्चित्त भाग - 2 | Prayashchitt Bhag - 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Prayashchitt Bhag - 2  by श्री कांतिलाल शाह - Shree Kantilal Shah

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री कांतिलाल शाह - Shree Kantilal Shah

Add Infomation AboutShree Kantilal Shah

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
् सया परिचय. उमनिक विचार करता हुआ श्रीकान्त, रामदेव के पास ध्याफर खा होगया । रामदेव को भी जाने की जल्दी थी, फिर सी वह श्रीकान्त की तरफ देखता तथा उसी तरह हँँसता हुआ खडा रहा 1 थोडी देर में सु्ताफिर कम होगये और प्लेटफॉर्म खाली हुआ । छुछ शी बोले बिना, एक-दूसरे के सामने ढेखकर दोनों स्टेशन के वाहर निकले । बाहर, मैदान मे झाते ही श्रीकान्त ने पूछा-- “माप कहाँ जायेंगे १” “एक मित्र से सिलने के लिये यहाँ श्राया हूं, रात को वापस लोड जाऊंगा” । “कल ही झापको दीक्षा सिलेगी 1” “हाँ, क्या तुम्हे कुछ श्याश्य होता है ?” “आशय क्यो न होगा * श्माखिर छापकों हिन्दू-वर्म क्यों छोड़ना पड रहा है ? ” “क्यों छोडना पड रहा है | मेरी इतनी बात सुनकर भी तुम न समझ पाये १ मे, मनुष्य हूँ, इसलिये * सुक्ते जीवित रहना है थ्यौर सुखमय-जीवन व्यतीत करना है, इसलिये !”” पृ




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now