अध्यात्म चर्चा | Adhyatm-charcha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 शहद किमिचचे थे आगे होता है वह पराशीन शोनिकि कारण परोद ही का गया हैं न मब्धज-यया मतिज्ञान श्रूततान सम्पक्‌ ही होते हैं १ व पण-लिस जीयके सम्पर्दर्शन नहीं है उस जीवे से मति थोर श्रतवान “कुमति द्ोर कुश्नत” शामस चहे जाते हैं, क्योफि सम्यग्दशन रहित दोवकी पस्तुकें स्वरूप कारखादिमें यथाय निर्णय नहीं होता? सेम्पन्दृ्ट * जीयक मि और श्रूतज्ञान सम्यचू दोते है । घ्० प-नय दिसे कहते हैं ? उ०रस्‍नप्रमाणसे ग्रहण फिये गये पदार्थोमें अभि प्राय रश एवदिश अहण करने वाले ज्ानकों नय कहें है! धरध्ध्-नयरी किस जानें झन्तर्भावि ता हैं? उन्धर-नयश्ा शततानमें थन्तर्माव होता हैं चयीझि नय बत्ताक सिमर्प हैं सर श्रूतज्ञान विकल्पा- रमुक चान हैं, लच्णकी धपक्ता इतना अन्तर है दि अनवान तो सर्य भेद स्वरूप वस्तुयी लानता है श्र नय एक मेदकों अदा करता है, इसीलिये श्रूतत्ान मसाण है और मय प्रमाणारा है। म०्शूनतत कया श्रतज्ञानसे थतिरिक्त शान समि- कल्प नहीं हैं ? उ०+०-मतिन्नान, श्रयधिज्ञान, सम परयर्यनान तथा




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