मास्टर साहब | Master Sahab
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
262
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मास्टर साहब
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ल्लिध
“कुछ नहीं, पूरा !” सुरारी ने कहदा--में साधित्री
को देवी समसाता हूँ । याँ स्त्री-हृद्य वी मानसिक दुबेल-
ताझँ का झभाव देवियों में भी नहीं दोता-जैसा कि
पुराण कहते हैं--, पर चोरी ! राम ! राम ! ऐसी बात
ं पर तुमने विश्वास-ही केसे कर लिया १”
ई हेतराम ने सन्देद की हिलती हुई डाल पर बेठ कर
कहा--“परन्तु रसोइया-मददाराज श्रपने झयोध्या हो झाने
वी दुद्दाई देकर जनेऊ छू रहे थे-शापनी बात की पुष्टि
मे ।” हि
सुरारी ने कहा-“इन रसोइया महाराज और
नौकरों को दाल नहीं गलती है न ! इसी लिये ये लोग
तुझ-मुस से झपने दिल का गुवार निकाला करते हैं ।
भला सावित्री बेचारी पचास बष की हुई, वे पिता के घन
का क्या बनायेंगी ?”
हेतराम बोला--“खुनता हूँ, झपने भतीजे रतन को
यह बहुत प्यार करती है; पिता के घन से खूब उसी का
घर भरती है । ” '
सुरारी हँसा । कहने लगएँ-“वाह भाई, वाह ! तुम
भी यार, यो-ही रहे। स्नेह-मय पिता को छोड़ कर वे भत्ता
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