तात्त्विक विचार | Tatvik Vichar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ इसकी टीका में श्री अमृतचन्द्र सुरि लिखते है-- जीव-पुदुगलाना परिणामस्तु बहिरज्ूनिमित्तभुतद्रव्यकालसद्भादे सति सभूतर्वादु द्रव्यकालसभूत इत्यमिधीयते । यानी--जीवपुद्गलो का परिणमन बहुिरगनिमित्तकारणसूत काल द्रव्य के होने पर होता है, इस कारण जीव पुदुगलो को परिसमन काल ग्रव्य से होना कहा जाता है । यहाँ भी स्पष्ट रुप से-निसित्त कारण का तथा उसकी सार्थकता का उल्लेस है । -. काल द्रव्य के विपय मे श्री पुज्यपाद आचार्य तत्वाथे सुब-के पाचवे अध्याय के चर्तनापरिणाम क्रियापरत्वापरत्वे च॒ कालस्य ॥ २२॥ सूत्र की टीका सर्वाध-सिद्धि मे लिखते हे--- ७ घर्मदीना द्रव्याणा स्वपर्यायनिवृत्ति प्रति स्वात्मनेव वर्तमानानां चाह्योपग्रहाद्टिना तद्ुदृत्यमाव।तु तत्प्रवतंनोपलब्षित काल । यानी--अपनी पर्याय के परिणमन मे स्वय प्रवृत्ति करने वाले धर्म अधमं आकाय पुदुगल तथा मुक्त जीव एव ससारी जीवों का परिणमन बाहरी मिमित्त कारण की सहायता के बिना नहीं हो सकता । उस परिणमन में सहायक काल द्रव्य है । ० साराण यह है कि जिस त्तरह मनुप्य चलता स्वय है परन्तु वह सुगम मागें, सडक, पगडडी आदि के विना (अगाध जल में, खाई पवत आदि जलप्य ऊमड सावड स्थानों मे तथा आकाथ भादि में) नहीं चल सकता, उसी तरह शुद्ध द्रव्य धर्म अधर्म, मुक्त जीव झ्रादि तथा पुद्गल आदि अणुद्ध द्रव्म अपनी पर्याय पलटने की स्वय दाक्ति रखते हुए भी. काल द्ष्य की ने मित्तिक सहायता के दिना परिणमन नहीं कर सकते 1 आकाश द्रव्य ः आकाश द्रव्य का निसूपण करते हुए पचास्तिकायकार श्री कुन्द- चुन्दाचायं लिखते है--




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