सुकांत के सपनों में | Sukant Ke Sapano Men

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Sukant Ke Sapano Men  by मालचंद तिवाड़ी - Malachand Tivadi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-दस, उन पर हंसी आती है । हो हो, पीजी चुररोबायी दें बारे मे तो जान सो। मैं दुबारा हागावाय गया दा । मालूम हुआ, दॉस्टर सबसे अत में वहाँ लव पहुँचा गद्या से घोर -चोररशर रपताय सिर पर उठा डासा 1 गुनो, पिरजय हुमा हे डॉविटर ने सदवी की पद आगे स्वोतरर भोतर सागा, तो मौत देरा इतने बंटी थी । स्टेयोस्वर पहने ही चुप था । अब देवारा डॉस्टर सिवाय हपसोग में सिर हिताने दे अलादा कया बरता ?* छसने यही किया कि इुदिया मे बिली की सरह सपटवर डॉक्टर का मुंह नाच लिया । लोग दौईे घोर बुद़िया को पपदा। सरत-जान बुद्धिया कहाँ कावू में आती ह हु िबदान देवर उसे बेहोश बरना पडा । डॉक्टर मे बहा, “बुदिया दौरे से पागल हो गई है ।” जरा शुम भी सोचना दि युदधिया पागल हो गई या. यहाँ भी हसो / 15




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