सन्त - वाणी | Sant - Vani

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Sant - Vani  by वियोगी हरि - Viyogi Hari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शेर सन्ननवाणी शेड . सात सरग असमान पर, भटकत है मन मूड; खालिक सो खोया नहीं, इसी महख में झड़ । [ गर्रीबदास १३ शक संप्रदा, सबद घट, एक ट्वार सुख-संच; इक आत्मा सब सेष मों, दूजो जग-परपंच । [ भीखा श्चे अब हों कासों बेर करों ? कस पुकारि प्रभू निज मुख ते-- “बट-घट हो दिहरों ।” [ इरिदास शद का रे, बन खोजन लाई सवंनिवासी सदा झलेपा, लोदी संग समाई । पुष्य-मध्य ज्यों बास बसत दे, झुकुर-मध्य ज्यों थाई; वैसे ही हरि बसे निरन्सर, घट ही खोजो भाई ! [. नानक श्द गनइमार अपराणी तेरे, भाजि कहां इम जाहिं; दावू” देकला सोचि सब, तुम विन कहिं न समाहिं। [. दादूदयात




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