विश्वभारती पत्रिका | Vishvabharati Patrika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राचीन जैन-साहित्य में आयुर्वेद ६७ (कंपन ); (१४) पीढसप्पि ( पंगुतव ) (१५) सिलीक्य (इठीपद्‌--फीलपांव ); और (१६) मधुमेह 1५. विपाकसूत्र में सोठह व्याधियों के नाम निम्नलिखित हैं--(१) श्वास; (९) कास ( खांसी ); (३) ज्वर, (४) दाद (५) कुक्षिगल (६) भगंद्र (७) अशें ( बवासीर ) (८) भजीणों (९) दृष्टिगल (१०) मूर्घदाक (११) भरोचक ( भोजन में भरुचि ) (१९) भक्षिवेदना (१३) कर्ण _ बेदना (१४) कण्ड [ खुजछी ] [१७] जलोदर [१६] कुष्ठ।६. अन्य रोगों में दुव्भूय [इुभूत :“-ईति) टिड्डीदल का उपद्रव ], कुलरोग, आआमरोग; नगररोग; मंडलरोग; शीष॑वेदना; ओछ्वेदना; नखवेदना; दंतवेदना; कच्छ; खसर' [खसरा]; पांडरोग; एक-दो-तीन-चारदिन के अन्तर से भानिवाला ज्वर, ' इन्द्र, धनु [वायु के शूुल, उदरशल, योनि, मह्दामारी; वत्गुछी _ [| जी मचलाना ] और विषकुम्म | फुडिया| आदि का. उल्लेख _सिलता है ।७ ः - रोगों को उत्पत्ति वेद्यकशास्त्र में वात पित्त और कफ को समस्त रोगों का मूल कारण बताया गया है। स्थानांग सूत्र (९,६६७) में रोगोत्पत्ति के नौ कारण कहे गए हैं--(१) आवदयकता से अधिक भोजन करना; (२) अहितकर भोजन करना; (३) आवश्यकता से अधिक सोना; (४) भावइयकता से अधिक जागरण करना; (५) पुरोष का निरोध करना; (६) सूत्र का निरोध करना (७) रास्ता चलना; (८) भोजन की प्रतिकूलता और कामविकार। पुरीष के रोकने से मरण; मूत्र के रोकने से दृष्टि की हानि और वमन के रोकने से कोढ़ का होना बताया गया है । ( ब्रहत्कत्पसाष्य ३,४३८० ) ः ः हर दे ५, तथा; देखिए विपाकसूनन १५ छृ० ७; निशीथमाष्य ११। ३६४६ ; उत्तराष्यय॑नसूत् १०९७३ ः ६, निशीथमाष्य ११,३६४७ में निम्नलिखित भाठ व्याधियां बतायी गयी हैं--ज्वर; इवास; कास; दाह; अतिसार; भगंदर; शल; भजांणें। तथा देखिए ज्ञातृघर्मकथा १३; परृ० १४४ ( वैद्य संस्करण ) । ४, जंदुद्वीप प्रह्षपति २४» छु० १९० ; जीवासिगस ३; प० १५३ ; व्याख्याप्रज्षप्ति ३, ९ ।




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