हिंदी नाटकों की शिल्प - विधि | Hindi Natakon Ki Shilp-vidhi

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Hindi Natakon Ki Shilp-vidhi by श्रीमती गिरिजा सिंह - Shrimati Girija Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शक शत्तर नाठक विकास के पथ पर बहुत शागे बढ़ चुका था । थू दू!खवादी बाद नै ती नाटक की प्रोत्सा'हन नडीं दिया, किन्तु बौद्ध+ 'भिफ्तुओआँ के लिए नाटक देखने का निणध ही हस बात का' प्रमाएा हैं कि उस समय नाठकीय अधिनय वीतराग वॉद्धभिक्तुओँं की थी शाकाजिति करने मैं समर्थ था' । कालिदास कै बहुत पश्ले महाभिुशश्वघीा का' सा पुर प्रकरण जौगीमारा आर सीतावैगा की गुफा की नाट्यशाला' मैं अभिनीत हुआ ।* जातक कथाओं वें नट, नाटक, समाज बार समाज- पण्डल का उल्लेख रिलता' है । बॉदनिकायो में भी हें नट भॉए नटराधिनी शब्द मिलते हं ।* पं० सीताराम चतुर्वेदी मे बाद्धीं के लिए नाटक की अपने पर्मनप्रबार का साधन बनाने तक की बात कहीं है । इसका प्रमाए मश्वघौण का “सारिफु्रप्रकरण” नामक ना आकीं का माटक बताया है पजिसमें खुद के दारा मादग्सायन भर सापिफूत्र के बाद्ध बनाने की कथा दी गहीं है । “ललित बिस्तर, * मदान नजातफ *सद्मंनयुणडरीके” आर *महावंश श्रादि ग्रन्थाँ में थी विशेशा पवा पर नाटक के अभिनय हाँने का उल्लेख पिविता है । थ ज तल्पश्चात मास, कालिदास, भवशूतति का' समय शाता' है | मास के नाटक ता” चतुपलब्ध थे किन्तु सन १६१२ भार १६१४ के मध्य टी ० गनपत शास्त्री नै उक्त नाटक कार के सैरृह नाटवां की चिवेन्द्रम से साज निकालने का कार्य किया ।* कालिदास आर शुड़क कै भी भनेक प्रसिद्ध नाटकों का उल्लेख मिलता है । इन संस्कृत नाटककार तक आकर नाट्पकला' चरम उत्कर्षा की' पहुंच गई । प्रॉटक ( उपस्पक 2), नाटक, (उफपक) माएा, छिप, इंहामुग, प्रह्यन, एककी आदि नाट्यनमेदा के उदाहरण संस्कृत नाटूय परम्परा में उपलब्ध छुए 1 शक की संख्या' मैं विभिननता' तथा नाटक की प्रवृत्ति के अकुधार विभिन्न १: हा० पथिगोडीर व्लाव की रिपॉर्ट, आक्यालाजिक्त से आफ इंडिया, १६०३-६४ र. सवा आरण्सी० : दुश्चिस्ट एचिडेंस फार दे बती स्जस्टैस आफ ड्रामा; भाइं० च0०क्यू०, जून १६३१, खण्ड १७, सं0 २. पुर १६७ ३. पंत सीताराम घत्वेदी : बधिमवनाट्यशा सत्र , प्र सा, दिध्सं0, १६६४, किताज मच्ल,हला'हायाद, पुर ३० रसध्शम७ दासमुप्त जाए रसक्कै० हू; िस्ट्री भाव संस्कृत शिटरैचर , प्रथम साठ,




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