दवशुनाती का द्वार | Deshunati Ka Dwar(1908)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
61
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(द)
है। सुमाति हिये में उपनेहें जब जानिद्दो कि--'नागरीमचार
देश उस्ति को द्वार दै' ॥१९॥।
जीवन को सार सुभ नागरीप्रचार एक, यासों न अधिक
और देश-उपकार है । माठमाषा--सेका मातथूमि की परम
यूजा दूजा जप तप पेम नेम ना हमार है ॥ आओ यश लीजे
पिलि कौजे 'कमलाकरजू' यामें यार हमदी को पूरो अधिकार
है । केवल न काहि किन्तु करिके दिखाय देह “नागरीमचार
देश उन्नति को द्वार दे' ॥२०॥
भाव-भरी, सुन्दर, सोहाबनी, सरस, स्रूधी,- ऐसी श्र
भाषा न दिखाईदेत यार ! है । कौनह् विषय की न न्यूनता
निददारियत, व्यवहार जोग परिपूरन भैंडार है ॥ चाहे ज्याहि
भाषाको कठिन ते कठिन शब्द लिखि पढ़ि लीजे शुद्ध,-पूरो
अधिकार है । निपट मैवार तोन, समक्रि सके न जोन--
““नागरी-मचार देशउन्नति को दार हे” ॥२१॥।
विश मुदफट् भट्ट बालकृष्ण माननीय, जिनको विचार
झति उन्नत, उदार है । धम्य २ जननी जनफ उनके हैं, जिन
जाया सुत ऐसो णुन, गौरव झगार है ॥ प्रकट “प्रदीप” को
प्रकाशकारि नागरी की साइस -सहित सेवा करते सदा रहे ।
सब को मुकावत जुमकाय बार २ बीर--“नागरी मचार देश
उस्नति को द्वार है” ॥२९॥।
यार ! करतब्य है तुम्दार तुम हिंदी की सहाय करो,
लाय चिस, बिच .'अमुसार है । सर २ खोली पुस्तकालय स्व-
तंत्र, जहाँ सबही को सदा आदागमपन बनारहे ॥ नये उपयोगी
ग्रैय दिंदीके छपाय-दाम सुलभ लगाय, करो उनको मचार है ।
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