दवशुनाती का द्वार | Deshunati Ka Dwar(1908)

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Deshunati Ka Dwar(1908) by गोपाललाल खन्ना - Gopal Lal Khanna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(द) है। सुमाति हिये में उपनेहें जब जानिद्दो कि--'नागरीमचार देश उस्ति को द्वार दै' ॥१९॥। जीवन को सार सुभ नागरीप्रचार एक, यासों न अधिक और देश-उपकार है । माठमाषा--सेका मातथूमि की परम यूजा दूजा जप तप पेम नेम ना हमार है ॥ आओ यश लीजे पिलि कौजे 'कमलाकरजू' यामें यार हमदी को पूरो अधिकार है । केवल न काहि किन्तु करिके दिखाय देह “नागरीमचार देश उन्नति को द्वार दे' ॥२०॥ भाव-भरी, सुन्दर, सोहाबनी, सरस, स्रूधी,- ऐसी श्र भाषा न दिखाईदेत यार ! है । कौनह् विषय की न न्यूनता निददारियत, व्यवहार जोग परिपूरन भैंडार है ॥ चाहे ज्याहि भाषाको कठिन ते कठिन शब्द लिखि पढ़ि लीजे शुद्ध,-पूरो अधिकार है । निपट मैवार तोन, समक्रि सके न जोन-- ““नागरी-मचार देशउन्नति को दार हे” ॥२१॥। विश मुदफट् भट्ट बालकृष्ण माननीय, जिनको विचार झति उन्नत, उदार है । धम्य २ जननी जनफ उनके हैं, जिन जाया सुत ऐसो णुन, गौरव झगार है ॥ प्रकट “प्रदीप” को प्रकाशकारि नागरी की साइस -सहित सेवा करते सदा रहे । सब को मुकावत जुमकाय बार २ बीर--“नागरी मचार देश उस्नति को द्वार है” ॥२९॥। यार ! करतब्य है तुम्दार तुम हिंदी की सहाय करो, लाय चिस, बिच .'अमुसार है । सर २ खोली पुस्तकालय स्व- तंत्र, जहाँ सबही को सदा आदागमपन बनारहे ॥ नये उपयोगी ग्रैय दिंदीके छपाय-दाम सुलभ लगाय, करो उनको मचार है ।




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