संसदीय समिति - प्रथा | Sansadiy Samiti Pratha

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Sansadiy Samiti Pratha by हरिगोपाल पराजाये - Harigopal Praajaye

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'संसदोप कार्य-विधि पर छोड़कर, देप स भी देशो मे वार्यपालिवा दिधान-मण्डल के प्रति उत्तरदायी होती ह््रें ऐसे विधान-मण्डलो में यह व्यवस्था है कि सदस्य, मली से प्रश्न प्रछकर उसके विभाग के प्रशासन और नीति के बारे मे सूचना प्राप्त कर सकते हैं । वेहिंजयम, डैनसा्क भादि जैसे कुछ थोडे-से विधान-मण्डलो में प्रश्नों से कुछ भिन्न “इन्टरप्रटेशन' अर्थात्‌ स्पष्टी-वकरण नामक प्रथा प्रचलित है। “स्पय्टीकरण' के लिए थीठासीन अधिकारी के माध्यम मे मली से प्रार्थना को जाती है कि वह उन मामलों के सम्बन्ध में मौखिक स्पप्टीवरण दे, जिन के लिए वह उत्तरदायी है । स्पप्टीकरण के परिणामस्वरूप चर्चा आरम्भ हो जाती है, परन्तु प्रदनो के आधार पर चर्चा आरम्भ नही वी जा सकती । स्वीडन, नीदरलैड ओर फ्रास के विघान-भण्डलो में स्पप्टीकरण प्रया का बहुत प्रयोग फिया जाता है । साधारणत प्रशनोत्तर का समय बडा ही रोचक समझा जाता है। जिसके लिए लोगों में बडी उत्सुकता रहती है और सदन में सदष्यों की उपस्थिति भी अधिक होती है । प्ररन पूएने का प्रत्यक्ष उड़ इय सूचना प्राप्त करना है, किन्तु उसका उपयोग अन्य प्रयोजनों के लिए भी किया जाता है, जैसे, दुरूपयोग वो प्रकाश में छाना, शिका- यतो को रखना, आश्वासन श्राप्त करना और सरकार के छिए उलझन उत्पन्न करना । भारत में प्रइ्न प्रूछने का विशेषाधिकार विधान सभा के सदस्यों वो. अप्र जी राज्य में बहुल देर से और क्रमाश मे रिया गया 1 अब लोक-सभा के सदस्यों को प्रश्न प्रछने के लिए उतनी ही स्वतन्त्रता प्राप्त है, जितनी डिसी अन्य स्वतलर विधान-सण्डल के सदस्यों को है । (क) प्रश्नों के प्रकार : मुख्य रुप से प्रदन दो प्रकार के होते हैं (1) ताराक्ति प्रश्न अर्थात्‌ जिनका 1. ब्हीयरे ने लिखा है, “प्रद्नों का प्रा जाना इतना ठोवप्रिय है कि सदस्य दूवारा पूछे जाने वाले प्रदनो की सख्या पर प्रतियघ है । इन श्रतिवन्धो के बावजूद विरले ही सभी मौयिक प्रदनो के उत्तर देना समव हो पाता है। हाउस आफ वॉमस के सामान्य सल में वर्ष भर मे 11, 000 दकत मौखिक उत्तर के लिए सूची में प्रकाशित होते हैं, पर उनमें केवल 5,000 प्रदनो वा वास्तविक उत्तर दिया जाता है, (देखिए ब्हीयरे --'लैजिस्लचर”)




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