मीरा और आण्डाल का तुलनात्मक अध्ययन | Meera Aur Andal Ka Tulanatmak Adhyayan

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Meera Aur Andal Ka Tulanatmak Adhyayan by डॉ॰ ना॰ सुन्दरम - Dr. Na. Sundaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तृतीय परिशिष्ट मे मु० देवीश्रसाद कृत “मीराबाई का जीवनवृत्त” मे उपलब्ध राठौड और सिसोदिया वश्ो का वश-वृक्ष उद्धत कर दिया गया है। यह मात्र मीरा के वश सबधी अनेक स्थापनों के व्यतिरेक के समानार्थ ही दिया गया है । चतुथे परिशिष्ट मे मीरा के पदों के अब तक उपलब्ध कुछ विशेष महत्वपूर्ण सग्रहो का सक्षिप्त परिचय दिया गया है। अत मे ग्रथानुवमणिका एवं अन्य सदर्भ-सामग्री दी गई है। प्रस्तुत दोध-प्रबत्ध के अध्ययन और अनुशीछन मे श्री श्रीनिवागराघवन द्वारा सपादित ““नुसिह प्रिया , श्री मु० राघवय्यगार कृत “'आलवारकल काल निले , पेरियवाच्चान पिल्ठे का तिरुप्पावे और नाच्चियार तिरुमोलि का भाष्य, आचाये परशुराम चतुर्वेदी द्वारा सपादित “'मीराबाई की पदावली ” (सप्तम सस्करण) वगीय हिन्दी परिषद्‌ द्वारा प्रकाशित मीरा स्मृति ग्रथ तथा श्री सिद्धश्वर भट्टाचाये कृत “दि फिलासफी आफ श्रीमद्मागवत” से विशेष सहायता ली गई है। मेरे अध्ययन को दिशा-वोध प्रदान करने में इन ग्रथो का विशेष योग रहा है। मै इसे स्वीकार करता हू कि ये ही प्रथ मेरे अध्ययन व अनुशीलन के प्रेरणा-स्रोत रहे है। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के लेखन काल म मुझे डा० राजबली पाडथ, आचार्य परशुराम चतुर्वेदी, प्रो० श्रीनिवास राघवन, डा० विद्यानिवास मिश्र, डा० राम शंकर सिश्र, श्री रंगनाथन, प्रो० नजुण्डन जी, श्री कच्छपेक्वरन, तथा डा ० महावीर सरन जैन, एव मेरे सहयोगी मित्र डॉ० विद्वनाथ सिह, एव आदरणीय श्री टी ० कृष्णस्वामी जी से विशेष सहायता मिली है। इनका मै हृदय से आमारी हु। प्रस्तुत शोघ-प्रबन्ध मे सलग्न मीरा और आशण्डाठ तथा उनसे सबधित मंदिरो एव अर्चा मूर्तियों के चित्र सास्कृतिक दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति के लिये परमावश्यक थे। इन्हे यथासमय भेजकर श्री श्री निवासराघवन तथा श्री रवामी विश्वेदवर शरण जी ने इस कायें को पुर्णता प्रदान की है। अतः मैं उनका विशेष रूप से आभारी हूँ। काशी नागरी प्रचारिणी सभा, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, और मदुर तमिल सगम के अधिकारियों का मै विशेष रूप से आमारी हूँ जिन्होंने बहाँ जाकर अध्ययन करते समय मुझे हर समव सहायता प्रदान की है। मैं केन्द्रीय दिक्षा मत्रालय एवं जबलपुर विश्वविद्यालय के अधिकारियों के प्रति विशेष आभार व्यक्त करता हू जिन्होंने एक अहिन्दी भाषी को हिन्दी साहित्य में शोध-कार्ये करने का अवसर एवं आवश्यक सुविधा प्रदान की । अत मे मै अपने गुरु एव निर्देशक, प्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा० उदयनारायण तिवारी का स्मरण करना अपना कतंव्य समझता हू जिनकी प्रेरणा पाकर दोघ-




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