महान मातृत्व की ओर | Mahan Matritv Ki Or
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
400
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्ध पिप्य कडिडा
तथा विप का पा प्रद्धि पाठा दी-जावा है । अदपएव इस दिवय
को सुच्छ न सममना 'वाहिए । क
बालिकाओं की शि्ता फे िपय में लोगों में झमी दफ
काफी अनुदारता समाई शुई है । उनकी दृष्टि में शिक्षा का एफ-
माघ पददेश्य नौफरी दै। अतः ये सोचते हैं कि जय हमें अपनी
बालिकाओं की फमाई सो स्पाना दो नहीं है, फ्रि दम फर्यों ब्पर्थ
को 'झापत्ति अपने सिर लेवें ? वे आठन के एन शब्दों को भूल
जतेि हैं कि “सियों के मस्तिप्क की उधता पर मनुष्यों की मुद्धि-
मस्ता निर्भर है ।” फभीनकमी उन्दें आशंका पेर हाठी है कि
पढ़ा-लिखा देने से अपनी इच्छा पूष्ठि के सापन सुगम दो भाने पर
कट पनकी देंपियां कुमार्गगामिनी न हो जायें । किंचनी पृणारपद दै
यह आशंका * इसके साथ दी दम यह शिक्षा उन्हें देना नहीं
जानते । योग्य शिता किसे करे हैं ९ यह सोचने का कष्ट ही
नहीं करते कि शिक्षा द्वारा कसब्य-शान हो जाने पर छियां
अपने सतील के मददत्द को फिदना गम्मोरता के साय 'अतुमन
कर सकती हैं । परन्तु, हां, शिक्षा के दिपय में इस भात का ध्यान
रखना भाषश्यक है कि वह अनिष्टकारी न दो 1
जहां घर में पदे-लिखे व्यक्ति हों, वहां सो लेखक फी राय
में वर्समान स्कूली शिक्षा से बचे रददना ही अच्छा है । यदि
पिठा, माई या अन्य फोई सम्बन्धी बालिका को ग्रह में ही पढ़ा
सफता है, तथ स्कूल की समय नष्टफरनेवालों 'और अल्प परिणाम-
दायक शिक्षा-पद्धति को दूर से नमस्कार फरना दो भला है।
शिक्षा द्वारा इम तो यही थाइते हैं. कि इमारी देवियां सदी
गरहिणी बनें 1 दम उन्हें परिचमी सभ्यता के भयंकर देत्र में
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