विद्याविनोदनाटक | Vidyavinodanatak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
62
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अछ्ू । ११
मन्वी । नद्दीं सदहाराल ! तीन मजुप्य यात्रामें भ्रशुभ हैं ;
था चार नहीं, तो दो चाहिये ।
प० सु०। अच्छी वात हैं ; वदत भमेला अच्छा नहीं ?
बूढ़े पग्डितको ले लेना लो ; नोरड़ ! बच, तुम दोनों भादमी
चातचीत करते चले जावोगे ?
दू० सु० । भव बिलम्ब नदीं करना चाहिये ?
मन्त्री । हां दाँ चले जाव बूढ़ परिड़त को ' ले लेना कहना
कि राजानोकी आज्ञा है नागरपुर चलने को 'वलिये ; (राजासे)
सद्दाराल | भ्राज्ञा दे दें कि बूढ़े पयिड़तको लेक - जावे ।
राजा । जाव छमारी शाज्ञा है, बूढ़े को ले लेना भव
बिलस्ब सत करो, थीघ चले जावो ।
नौरंग । मद्दाराज जी चाज्ञा । ( जाता है । )
( नेपथ्य मेंखे ठाकुरली के मन्दिरसे घण्टे की ध्वनि । )
मन्त्रो । ( चौंककर ) महाराज ! सन्ध्याका समय हो गया
खूय्य भी अपनी अंशमालो किरणों को एकत्रित कर अस्ताचलके
पाइने इए अब दर्वार विसजनका ससय है ।
राजा । अच्छा अब आपलोग अपने अपने स्थानको जावे,
मैं भी भव निज नैमित्तिक नियमाजुसार सन्ध्याको जाता हू ।
( एक घोरसे राला और दूसरी ओर से मन्तरी दोनों सुसा-
दिवोंसे इाथ सिलाये इए दर्बारसे चले गये । )
( सबका प्रस्थान । )
जवनिका पतन ।
इति प्रथुम् अहन ।
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