भारत की फसलें | Bharat Ki Phasalen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
54 MB
कुल पष्ठ :
410
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ भारत की फसलें
( 9८४०8)०५५ ) जातियाँ निश्चित हुईं । इन दो वर्गों को तदुपरान दाने के रंग--
लाल या सफेद दाने के शुण--लम्बे, बारीक या मदद, लीफ शीथ के रंग लाल या
हू, अन्दर के ग्लूम (19067: &्र[प०८) का रंग-लाल काला, सफेद या पीला, श्रन्द्र
के ग्लूम के सिरे का रंग, रंग-रहिंत होना तथा बाह्य ग्लूम का रंगीन या रंगरहित होना
दि झ्राघार पर विभाजित किया गया और इस प्रकार सिन्ध के कुल घान ३४.
विभिन्न किस्म में बैँट गये | इस प्रकार का विभाजन सन् १६३२ में मित्रा श्र
गांगौली ने श्रासाम में सुर्मा घाटी के घानों को विभाजित करने में प्रयोग किया; किन्ठु
उन्होंने इस विभाजन का श्राघार बिना भूसी वाले दानो को बनाया और पौधे की
बालियों की बनावट, कार, रूप श्रादि को मां। ध्यान में रखा | इस प्रकार टूँड वाली
और बेटेंड वाली दो प्रधान जातियाँ बनीं किन्ठु इन्हें पुनः जब उपबर्गों में विभाजित
किया गया तो इस घार्टी के ही धान £५ विभिन्न जातियों श्रौर ७०३ किस्मों के मिले ।
पूर्वी बंगाल प्रदेश के धानों का विभाजन करते हुए हेक्टर (८८८०४) और उनके
साथियों ने घान की ५४० विभिन्न जातियाँ पाई । बिहार श्रौर उड़ीसा के धानों के
विभाजन में काशीराम श्रौर चेट्टी सलग्न थे । उन्होंने १६३४ ई० में अपना विभाजन
प्रकाशित किया जिसके अनुसार इन प्रदेशों की किसमें संख्या में १२३ मिल्ञां । इनका
विभाजन घान के दाने की बनावट, आन्तरिक ग्लूम के रंग, वाह्य स्लूम क रंग,
व'ह्म ग्लूम की लम्बाई, पोरों की लम्बाई, पोरों के रग श्र बालियों के रंग, दाने के
आकार, रूप श्रादि पर निर्भर था । काशीराम ने बिहार श्रौर उड़ीसा के घानों के
विभाजन के पश्चात् इकबोटे (छ8४0016) के साथ मिलकर पजात्र और पश्चिमी उत्तर
प्रदेश के वसन्त ऋतु के धानों का विभाजन प्रारम्म किया । १६३६ में यह विभाजन
प्रकाशित भी हो गया जिसके श्रनुसार ४१ जातियाँ प्राप्त की गईं |
अब तक जितने विभाजन का उल्लेख किया गया; वे समस्त पाधों या दानों
की वाह्य आकृति के ही आधार पर निश्चित किये गये थे, किन्ठु कुछ विद्वानों ने घान
का विभाजन उसके जेनेटिंकल (0७८०८०८४1) और साइटोलाजिकल (0४८०1०8्टांए्21)
शआधारो पर भी किया । इन विद्वानों में काटो (९८४८०) और उनके सहायकों का नाम
आता है जिन्होंने विश्व के धानो को दो किस्मों में विभक्त किया । (१) जापानिका
(5पांट४ )--यह धान जापान श्र कोरिया का मौलिक बताया जाता है । (२)
इश्डिका (०त:०82)--धघान की यह किस्म चीन, जावा, दक्षिण पूर्वीं एशिया श्रौर
भारतवर्ष की पड़ोसी है जो यहाँ का उप्णुकटिबन्धीय जलवायु में उगायी जाती है ।
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