अन्धा उपन्यास | Andha Upanyas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्द
राधा --'यह आपने कंसे जाना ?”
परवेज--“श्राप इस बारे में कुछ जानती हैं ?'
राधा--'कुछ-कुछ, थोड़ा-बहुत ।
परबेज--'तो बताइये ।
'राधा--आप भी तक कुछ नहीं समझे ?”
परवेज---'या तो मैं अवश्यकता से श्रथिक बुद्धिमान हूं--या फिर
महुत मुखें । ः
'रसधा-- वास्तव में आपके सीने में दिल नहीं पत्थर है ।'
परवेज परे, यह श्रापकों क्या हो गया है ?'
राधा--मापकों क्या ?”
दे
दी का जी कालेज में नहीं लगा । वह घर चली पाई यहाँ भी
तबीयत घबराई, सिनेमा बली गयी । मध्यास्तर तक बैठना कठित
हो गया, वहां से उठी तो उसके कंदम पार्क की ओर उठने लगे । वह एक
कोने में'बैठ गयी । इसके हृदय में इस समय हलचल मची हुई थी---
प्रसबेज श्रतों से खिंचता है. सम्भवतः इसलिए कि इसे श्रपनी सुन्दरता
को. अभिमान है - मैं समझती थी इसके पहलू में दिल नहीं पत्थर को
टुकड़ा है, यह भ्रन्था है, बहुरा है । यह हृदय की धड़कनें नहीं सुनता,
मुहम्बंत, इश्क की' बातों से श्रनजान है-- परन्तु आज भेद खुल ही गया
आखिर राधा पर राल टपके ही पड़ी इसकी । - उसने तीर चलाया श्र
प्रो? साहब घायल हो गये । उसने प्रेम का जाल फेंका और यह हुजरत
साहिब' जो भ्रपने आपको बहुत चालाक समझते थे फंस ही गये । कसी
'लगामिट की जातें कर रहे थे यहू दोनों । राधा लो पुष्प की भांति खिलीं
जा रही थी'। आँखों में नदोप्सा छाया थी । बात पीछें' करती थी
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