अन्धा उपन्यास | Andha Upanyas

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Andha Upanyas  by रईस अहमद जाफ़री - Reis Ahamad Jafari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्द राधा --'यह आपने कंसे जाना ?” परवेज--“श्राप इस बारे में कुछ जानती हैं ?' राधा--'कुछ-कुछ, थोड़ा-बहुत । परबेज--'तो बताइये । 'राधा--आप भी तक कुछ नहीं समझे ?” परवेज---'या तो मैं अवश्यकता से श्रथिक बुद्धिमान हूं--या फिर महुत मुखें । ः 'रसधा-- वास्तव में आपके सीने में दिल नहीं पत्थर है ।' परवेज परे, यह श्रापकों क्या हो गया है ?' राधा--मापकों क्या ?” दे दी का जी कालेज में नहीं लगा । वह घर चली पाई यहाँ भी तबीयत घबराई, सिनेमा बली गयी । मध्यास्तर तक बैठना कठित हो गया, वहां से उठी तो उसके कंदम पार्क की ओर उठने लगे । वह एक कोने में'बैठ गयी । इसके हृदय में इस समय हलचल मची हुई थी--- प्रसबेज श्रतों से खिंचता है. सम्भवतः इसलिए कि इसे श्रपनी सुन्दरता को. अभिमान है - मैं समझती थी इसके पहलू में दिल नहीं पत्थर को टुकड़ा है, यह भ्रन्था है, बहुरा है । यह हृदय की धड़कनें नहीं सुनता, मुहम्बंत, इश्क की' बातों से श्रनजान है-- परन्तु आज भेद खुल ही गया आखिर राधा पर राल टपके ही पड़ी इसकी । - उसने तीर चलाया श्र प्रो? साहब घायल हो गये । उसने प्रेम का जाल फेंका और यह हुजरत साहिब' जो भ्रपने आपको बहुत चालाक समझते थे फंस ही गये । कसी 'लगामिट की जातें कर रहे थे यहू दोनों । राधा लो पुष्प की भांति खिलीं जा रही थी'। आँखों में नदोप्सा छाया थी । बात पीछें' करती थी




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