निराश प्रणयी | Nirash Pranayi

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Nirash Pranayi by बलभद्र ठाकुर - Balbhadra Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्श 'उड़ाता; किन्तु उसने कभी 'थह सोचा भी न था कि उसे भीं कानूनी हथकंड़े का शिकार होना पड़ेगा ! त्रयेकरोफ मुकदमा जीतने के बारे में सोचने से बिल्कुल निश्चित था । शबाश्किन उसकी तरफ से काम कर रहा था । उसका न्नाम लेकर, धमकाकर, जजों को घूस देकर, और हर संभव तरीके से कानूनी छुक्कों की गलत व्याख्या करके वह झन्धेर गर्दी मचाये था । तथापि ६ फ़रवरी सन्‌ १५ 'को अदालत की ओर से दुल्रो- “फरकी को इस आशय का एक आदेश-पत्र मिला कि वह अदालत में हाजिर होकर अपने अर्थात्‌ लेफ्टिनेंट दु्लोफस्की योर जनरल 'चयेकुरोफ के बीच जमीनदारी के लिए चुल रहे भकगड़े का फैसला सुन जाय, 'झौर उस नि्सय-पर '्पनी सहमति या असहमति का हस्ताक्षर कर जाय . दुन्नोफस्की उसी दिन शहर को चल दिया । रास्ते में त्रयेकुरोफ़ -से उसकी मुलाकात भी हुई; दोनों ने एक-दूसरे पर अपनी गये भरी दृष्टि भी डाली, और दुब्रोफसरकी ने अपने प्रतिद्वन्द्वी के 'वेहरे पर ईर्ध्या सरी सुस्कुराइट को दौड़ते भी देखा। नगर में पहुँचकर अंद्रे इ गब्रिलोंविच एक परिचित व्यापारी के घर ठहरा । उसी के घर रात बिताई, और सबेरे जिला-अदालत न्पहुँचा । किसी ने उसपर ध्यान न दिया उसके बाद फिरिलपेन्रविच पहुँचा । डापनी-झपनी कलम श्रपने कानों पर रखके क्लकं लोग उठ खड़े हुए । वकीलों का समुद्दाय बड़े अदब से सिला | उसके हर पु ४ दो




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